गुरुवार, 28 नवंबर 2019

मेरी फिल्म पूर्वोत्तर के स्थानीय लोगों, उनकी राजनीतिक स्थिति,उनके संघर्ष की पड़ताल करती है : राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता मंजू बोरा

प्रजा दत्त डबराल @ नई दिल्ली


       भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2019 के भारतीय पनोरमा वर्ग में मंजू बोरा द्वारा निर्देशित राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता पंगचेन्पा भाषा की फिल्म 'द लैंड ऑफ पॉयजन वुमन' और संजय पूरन सिंह चौहान द्वारा निर्देशित हिन्दी फिल्म 'बहत्तर हूरें' दिखाई गई।


राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बोरा ने कहा मुझे अपनी फिल्म पर गर्व है कि इसे आईएफएफआई के स्वर्ण जयंती वर्ष के भारतीय पनोरमा सेक्शन में चुना गया है। अपनी फिल्मों के माध्यम से मैं पूर्वोत्तर के स्थानीय लोगों, उनकी राजनीतिक स्थिति, अस्तित्व के लिए उनके संघर्ष की पड़ताल कर रही हूं। पूर्वोत्तर लोग 120 विभिन्न बोलियों का उपयोग करते है। मैं महसूस करती हूं कि इन बोलियों के बिना भारत सम्पूर्ण नहीं हो सकता। वे आज आईएफएफआई, पणजी में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में बोल रही थी।



उन्होंने कहा कि जहां मैंने अपनी फिल्मों की शूटिंग की, स्थानीय लोग इस बारे में नहीं जानते थे। यह स्थान भारत की सीमा पर है। यहां एक समुदाय के पांच हजार से कम लोग रहते है। मुझे विश्वास है कि यदि कोई व्यक्ति इस स्थान की यात्रा करेगा, तो उसे यह महसूस होगा कि प्रकृति कितनी विशाल और सुंदर है।


फिल्म को शूट करना शारीरिक और वित्तीय रूप से बहुत चुनौतीभरा था। भारी बर्फबारी के दौरान भारतीय सेना ने क्रू के सदस्यों की सहायता की।


बहत्तर हूरें फिल्म के निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान ने कहा कि यह दो व्यक्तियों की कहानी है, जो मरने के बाद 72 कुवांरी लड़कियों की खोज में रहते है। मैं अपने निर्माता को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने ऐसे गैर-पारम्परिक विषय को  समर्थन दिया। मैं निर्देशक के अपने कैरियर के शुरूआत में ही बहत्तर हूरें जैसी फिल्में बनाना चाहता था। जब व्यक्ति अपने कैरियर में स्थापित हो जाता है तो गैर-पारम्परिक और बोल्ड विषयों पर फिल्म बनाना मुश्किल हो जाता है। इससे पहले मैंने लाहौर फिल्म बनाई थी, जो पाकिस्तान में बैन कर दी गई है। मैं पाकिस्तान, खाड़ी देशों और आतंकवाद से पीड़ित प्रत्येक देश में इस फिल्म का प्रदर्शन कराना चाहता हूं। इस फिल्म में बहुत ज्यादा वीएफएक्स दृश्य है। इसलिए पोस्ट प्रोडक्शन में काफी वक्त लगा।


बहत्तर हूरें फिल्म के अभिनेता पवन मल्होत्रा ने कहा कि मैंने एक विश्वास करने वाले पात्र की भूमिका निभाई है, जो 72 कुवांरी लड़कियों की तलाश में रहता है। इसे महसूस करने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी। जब संजय ने फिल्म की कहानी मुझे सुनाई, तो मैंने तुरंत ही इसे स्वीकार कर लिया। हालांकि मैंने मसाला फिल्मों में भी काम किया है परन्तु मेरी अधिकांश फिल्में गंभीर फिल्मों की श्रेणी में है।



निर्माता गुलाब सिंह तंवर ने कहा कि मैं मूल रूप से एक पायलट हूं और अपनी एविएशन एजेंसी चलाता हूं। मुझे सिनेमा बहुत पसंद है। मैंने 2012 से फिल्मों का निर्माण प्रारंभ किया। मेरे मन में स्पष्ट भाव था कि मुझे पैसे कमाने के लिए फिल्में नहीं बनानी है। मुझे ऐसी फिल्में बनानी है जो यादगार सिद्ध हो। बहत्तर हूरें एक चुनौतीपूर्ण फिल्म थी। इस फिल्म को बनाने का उद्देश्य समाज के कम से कम एक व्यक्ति में बदलाव है।


द लैंड ऑफ पॉयजन वुमन


फिल्म में एक व्यक्ति के प्रयास को दिखाया गया है, जो पॉयजन वुमन के मिथक को तोड़ना चाहता है। यह अरुणाचल प्रदेश के सुदूर क्षेत्र में शूट की गई फिल्म है। तवांग जिले के जेमीथोंग क्षेत्र की पृष्ठभूमि वाले इस उपन्यास को थोंगची ने लिखा है। फिल्म में एक रहस्यपूर्ण कहानी को दिखलाया गया है। उपन्यास में इस जनजाति में व्याप्त अंधविश्वास को दर्शाया गया है। फिल्म को सर्वश्रेष्ठ पंगचेन्पा भाषा की फिल्म के लिए 66वां राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है।


बहत्तर हूरें


एक आतंकी प्रशिक्षण केन्द्र में बिलाल और हकीम को निर्देश दिया जाता है कि यदि वे अपना जीवन अल्लाह के नाम कर देंगे तो उन्हें जन्नत में 72 हूरों (72 सुंदर लड़कियां) का ईनाम मिलेगा। मुंबई आतंकी हमले के बाद हकीम और बिलाल बहुत आश्चर्यचकित हो जाते है जब वे देखते है कि 72 हूरों की बाहों के बदले वे एक अस्पताल में है जहां उनके भूत उनके शरीर पर होने वाले ऑटोप्सी को देखते है। इस फिल्म में हिंसक आतंक के वास्तविक परिणामों को दिखाया गया है और आग्रह किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को सम्मान और गौरव प्रदान किया जाना चाहिए।