बुधवार, 1 जनवरी 2020

ये  जो सामने ऊँची दीवार है ,सिर्फ़ ए भ्रम व मायाजाल है...

कवि नारायण डबराल की  कलम से  :-


ये  जो सामने ऊँची दीवार है


ये  जो सामने ऊँची दीवार है
सिर्फ़ ए भ्रम व मायाजाल है।
हौंसले  बुलन्द  हैं   मेरे इतने  
बस ऊँची छलाँग का सवाल है।
ये जो सामने 
सिर्फ ए भ्रम 


इधर  काँटे  शीशे बिखरे  पड़े
कीचड़  कंकड़  रोड़े  गड़े  पड़े।
मै जानूँ दीवार के पार का हाल
एक मख़मली भविष्य तैयार है।
ए जो सामने
सिर्फ़ ए भ्रम 


बाधा से विचलन न स्वभाव मेरा
परी़क्षा ये  मन  के  उत्साह  की।
मेरे  जुनून की , मेरे  संस्कार की 
रगों मे गर्म ख़ून का जो उबाल है।
ए जो सामने
सिर्फ ए भ्रम 


मेरे  मित्र हैं ,पर  कुछ  शत्रु  भी 
सबका अपना अपना अंदाज है।
सब देते  रहते  हैं अनुभाव  मुझे
बस  सही परख का कमाल  है।
ए जो सामने 
सिर्फ ए भ्रम 


न ठहराव,झुकाव न कुप्रभाव  है
क्षितिज की ज्योति की चाह  है।
न शौर्य,बल न चाह का अभाव है
ये तो रोशन जीवन की मशाल  है ।
ए जो सामने 
सिर्फ ए भ्रम 


अपने पर भरोसा पूरा  मुझको
अपनों पर उससे  कई अधिक।
बस संग  चलने का  खयाल है
फिर दीवार की क्या मजाल है।


ये  जो सामने  ऊँची  दीवार  है
सिर्फ़ ए  भ्रम व माया जाल है ।


जीवन में आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा को दीवार से सम्बोधित किया गया है।