मंगलवार, 31 मार्च 2020

ताकतवर लोकतंत्र के मुखिया ट्रंप और मोदी कि दोस्ती का नया अंदाज..

हरि सिंह रावत @ नई दिल्ली


      अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि उनकी सफलता का राज हमेशा बड़ा सोचने की उनकी आदत है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहीं ज्यादा बड़ा सोचकर कामयाबी हासिल कर लेते हैं।  दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतंत्र के मुखिया ट्रंप और सबसे ज्यादा आबादी वाले लोकतंत्र की अगुआई करने वाले मोदी ने अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में टीवी पर सीधे प्रसारित हो रहे सार्वजनिक कार्यक्रम में एक-दूसरे को गले लगाया तो वहां मौजूद 1,30,000 लोगों की तालियों की गडग़ड़ाहट की गूंज न सिर्फ पूरे भारत में, बल्कि अमेरिका और दुनियाभर में सुनी गई। 


ट्रंप भारत की अपनी पहली राजकीय यात्रा पर आए थे और उनके सम्मान में बड़े करीने से आयोजित शानदार स्वागत समारोह से जो संदेश निकला, उसकी प्रभावी ढंग से व्याख्या आधिकारिक संयुक्त बयानों के दस्तावेजी पृष्ठों में नहीं की जा सकेगी।  भारत और अमेरिका ने अपने आपसी संबंधों को बहुत मजबूत किया है जिसे अब व्यापक वैश्विक सामरिक भागीदारी कहा जा रहा है। ट्रंप की दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा कई मायनों में मोदी की बेमिसाल, अत्यधिक व्यक्तिगत शैली वाली कूटनीति और व्यावहारिक तथा निर्णायक विदेश नीति की जीत थी, बकौल विदेश मंत्री एस. जयशंकर, जिसकी वकालत मोदी भारत को 'दक्षिण (विकासशील देशों) के ध्वजवाहक' के रूप में स्थापित करने के लिए करते रहे हैं. 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मोदी ने अपनी उस ख्वाहिश को एक कला के रूप में बदल दिया है। 



ट्रंप ने मोदी को न केवल 'असाधारण और शानदार नेता और एक सच्चा दोस्त' बताया, बल्कि यह भी कहा, ''भारत एक जबरदस्त खिलाड़ी बनने जा रहा है और यह पहले से ही उस दिशा में चल पड़ा है. समस्याओं को सुलझाने और इस अतुल्य क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देकर क्षेत्र का बेहतर भविष्य संजोने में आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी है और आप एक महत्वपूर्ण नेतृत्व की भूमिका निभा सकते हैं.''ट्रंप के साथ बर्ताव भारत के लिए मुश्किल सवाल रहा है और जैसा कि इस यात्रा ने दिखाया, मोदी ने भारत-अमेरिका संबंधों को उचित दिशा दी है। जनवरी 2017 से राष्ट्रपति की कुर्सी पर आसीन ट्रंप दुनिया के लिए 'डिस्ट्रप्टर इन चीफ' या प्रमुख व्यवधानकारी साबित हुए हैं, जिन्होंने अमेरिका की अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के पार साझेदारियों की नींव हिलाकर रख दी है, वैश्विक संस्थानों और समझौतों के प्रति नाममात्र का सम्मान दिखाया है, दुनिया के दारोगा के रूप में अमेरिका की भूमिका को कम करते हुए उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के अपने सहयोगियों को असहज किया है और चीन के खिलाफ व्यापारिक जंग छेड़ दी है। 


भारत सहित दुनियाभर के नेताओं ने मनमौजी अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ बर्ताव में दिक्कत महसूस की है, क्योंकि उनका व्यवहार अप्रत्याशित है. उनकी नेतृत्व शैली रूखी, दादागीरी वाली और घमंड से भरी हुई है और उनके मन में हमेशा अमेरिका के व्यापार असंतुलन को ठीक करने की धुन सवार रहती है जिसे वे ऐतिहासिक भूल मानते हैं और हमेशा विजेता ही होना चाहते हैं। भारत के साथ ट्रंप का रुख कभी गरम तो कभी नरम रहा है. जून 2017 में व्हाइट हाउस में अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक में उन्होंने मोदी का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। 

इस बीच, ट्रंप की कट्टर विश्व दृष्टि की वजह से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की मौजूदा संरचना में बड़ा परिवर्तन आया. भारत और अन्य देशों का इससे मुकाबला हुआ, जैसा कि शशि थरूर और समीर सरन अपनी नई पुस्तक द न्यू वर्ल्ड डिसऑर्डर में जिक्र करते हैं। वैश्वीकरण और उदारवादी विश्व व्यवस्था की बातें पीछे छूट गईं, और एक दबंग और संकीर्ण विचारों वाले राष्ट्रवाद का नाटकीय रूप से पुनरुत्थान होने लगा। ट्रंप ने न केवल संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन सहित मौजूदा विश्व व्यवस्था के संस्थागत ढांचे की अवहेलना की, उन्होंने प्रमुख मुद्दों पर एकतरफा कार्रवाई को भी प्राथमिकता दी जिससे यूरोप, जापान और अन्य अमेरिकी सहयोगी बहुत हद तक असहज महसूस करने लगे। 

नई विश्व व्यवस्था अगर वास्तव में बहुध्रुवीय होनी है, तो भारत को भी एक महत्वपूर्ण शक्ति बनना पड़ेगा. इसके लिए, मोदी फ्रंट फुट पर बल्लेबाजी करने के लिए तैयार थे और भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी जगह, विकल्पों और कद का विस्तार करने में आगे ले जा रहे थे। गुटनिरपेक्ष होने की बजाए, भारत ने बदले हुए अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में विभिन्न ध्रुवों के साथ सामंजस्य की स्थिति में होना चुना, बेशक, भारत नेहरूवादी युग से प्रस्थान की नीति पर बढ़ा लेकिन जिस उत्साह के साथ भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सक्रियता बढ़ाई वह उस दौर की यादें ताजा कर रही थी। इस तरह मोदी सितंबर 2019 में व्लादिवोस्तक में पुराने दोस्त व्लादिमीर पुतिन के साथ गले मिले तो उसके कुछ हक्रतों के भीतर ही वे टेक्सास के ह्यूस्टन की 'हाउडी मोदी' रैली में भारतीय-अमेरिकियों से खचाखच भरे हॉल में ट्रंप के साथ खड़े थे। उसके बाद उन्होंने चीन से गंभीर मतभेदों के बावजूद तमिलनाडु के ममल्लापुरम के समुद्र तट पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मेजबानी भी की। 

फिर भी, भारत को यह अच्छी तरह से पता था कि चीन के उदय के साथ, अमेरिका के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना अत्यावश्यक है। जब व्यापार को लेकर मतभेदों के कारण ट्रंप ने संबंधों को तोडऩे की धमकी दी, तो मोदी और उनकी विदेश मामलों की टीम ने उसे वापस ठीक करने के लिए दो मोर्चों पर काम करना शुरू कर दिया। इस दिशा में एक बड़ा कदम मोदी के दोबारा चुनकर आने के बाद मई 2019 में जयशंकर को विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त करना रहा, जिनकी विशेषज्ञता को मोदी ने सराहा है और मंत्रिमंडल के सहयोगी रूप में बहुत भरोसा करते हैं। 

इस बीच, अपने सशस्त्र बलों की कमान संरचना का एक रणनीतिक पुनर्गठन करते हुए, अमेरिका ने अपने अमेरिकी पैसिफिक कमान को अमेरिकी इंडो-पैसिफिक कमान का नाम दिया और इसके अधिकार क्षेत्र को न केवल हॉलीवुड से बॉलीवुड तक बल्कि हिंद महासागर के अफ्रीका के पूर्वी तटों पर स्थित देशों तक बढ़ाया. इस तरह भारत हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री डकैती को रोकने के लिए अपने समुद्री जहाजों को तैनात करने और बचाव कार्यों में शामिल होने के साथ ही महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार लिंक को मुक्त और शांतिपूर्ण रखने में योगदान देने वाले एक पूर्ण सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरा। 

हालांकि, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश की परियोजनाओं में चीन का बढ़ता निवेश भारत के लिए चिंता का विषय है. चीन की तरह समृद्ध नहीं होने के कारण भारत ने इन देशों की केवल उन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है जो संपर्क बनाने और विस्तार करने में मदद करेंगी। 2014 से, 142 परियोजनाएं शुरू की गई हैं और इसमें से 52 को पूरा किया जा चुका है। ये श्रीलंका में कोलंबो-मटारा राजमार्ग को विकसित करने से लेकर बांग्लादेश के साथ 1965 के पूर्व के छह सीमा पार रेल लिंक को बहाल करने और नेपाल में छह सीमा पार रेल लिंक प्रदान करने तक सीमित हैं।