शनिवार, 26 जनवरी 2019

सोहम आश्रम के महंत स्वामी देवस्वरूपानन्द जी महाराज ने अज्ञातवास में तपस्या का संकल्प लिया...

श्याम सुंदर तिवारी: दिल्ली



                       


                            सोहम आश्रम के महंत स्वामी देवस्वरूपानन्द जी महाराज ने अज्ञातवास में तपस्या का संकल्प लिया वृंदावन धाम स्थित सोहम आश्रम के महंत स्वामी देवस्वरूपानन्द जी महाराज ने जन कल्याण हेतु अनिश्चितकालीन अज्ञातवास के दौरान तपस्या करने का संकल्प लिया है।


अज्ञातवास के दौरान महाराज जी गौतमबुद्ध की भांति विचरण करेंगे, बिना किसी पदवेष के एक स्थान पर केवल एक रात्रि विश्राम तथा एक समय भिक्षा मांग कर केवल एक बार हीं भोजन प्रसाद ग्रहण करेंगे। जो बहुत ही कठिन संकल्प है।



           यह जानकारी महाराज जी के दिल्ली के भक्त श्याम सुन्दर तिवारी जी व घनश्याम तिवारी जी ने पत्रकारों को बताई, जब वह महाराज जी का आर्शीवाद लेने उनके पास पहुँचे। जानकारी के मुताबिक वृंदावन धाम स्थित स्वामी महेशानंद सोहम धर्मार्थ आश्रम, परिक्रमा मार्ग, वृंदावन में स्थित सबसे वैभवशाली आश्रमों में से एक है। वहाँ महंत महाराज जी से कई विषयों पर लंबी चर्चा हुई। बताया गया कि जन कल्याण के लिए महाराज जी ने अनिश्चितकालीन अज्ञातवास के दौरान तपस्या करने का संकल्प लिया है। बताया गया कि इस दौरान महाराज जी मॉ नर्मदा जी की परिक्रमा करेंगे।


नर्मदा जी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और तेरह दिनों में पूर्ण होती है। यह परिक्रमा लगभग 3000 किलोमीटर लंबी है। अनेक देवगणों ने माँ नर्मदा का आवाह्न व ध्यान किया है। ऐसी मान्यता है कि द्रोणपुत्र अश्वथामा अभी भी माँ नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। इन्हीं नर्मदा के किनारे न जाने कितने दिव्य तीर्थ, ज्योतिर्लिंग, उपलिगं आदि स्थापित हैं। जिनकी महत्ता चहुँ ओर फैली है। परिक्रमा वासी माँ नर्मदा के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। श्री नर्मदा जी की जहाँ से परिक्रमावासी परिक्रमा का संकल्प लेते हैं वहाँ के योग्य व्यक्ति से अपनी स्पष्ट विश्वसनीयता का प्रमाण पत्र लेते हैं।


परिक्रमा प्रारंभ् श्री नर्मदा पूजन व कढाई चढाने के बाद प्रारंभ् होती है। नर्मदा की इसी ख्याति के कारण यह विश्व की अकेली ऐसी नदी है जिसकी विधिवत परिक्रमा की जाती है। प्रतिदिन नर्मदा का दर्शन करते हुए उसे सदैव अपनी दाहिनी ओर रखते हुए, उसे बिना पार किए दोनों तटों की पदयात्रा को नर्मदा प्रदक्षिणा या परिक्रमा कहा जाता है । यह परिक्रमा अमरकंटक या श्री ओंकारेश्वर से प्रारंभ करके नदी के किनारे-किनारे चलते हुए दोनों तटों की पूरी यात्रा के बाद वहीं पर पूरी की जाती है, जहां से प्रारंभ की गई थी ।