शुक्रवार, 15 मार्च 2019

इस पीले फूल फ्यूंली का क्या महत्व है फूलदेई में...

संवाददाता : देहरादून उत्तराखंड 



         चैत्र के महीने ने ही खिलता है ये फूल जिसका खास महत्व है।क्योंकि फूलदेई का उत्सव इसके बिना अधूरा है,इसके बिना वो डलिया अधूरी ही होती है जिसमे ये फूल ही न हो।यहां बात हो रही है इन दिनों खिलने वाले पीले फूल फ्योंली की।बच्ची की दलिया या प्लेट या फूलकंडी में बच्चे फ्योंली, बुरांस और दूसरे स्थानीय रंग बिरंगे फूलों को चुनकर लाते हैं और उनसे सजी फूलकंडी लेकर घोघा माता की डोली के साथ घर-घर जाकर फूल डालते हैं।
खास बात ये है कि पहले हफ्ते में बच्चों को केवल फ्यूंली के पुष्प ही डालने होते हैं बाकी दिनों में हालाँकि अन्य फूल डाल सकते हैं लेकिन फ्यूंली के बिन नही। भेंटस्वरूप लोग इन बच्चों की थाली में पैसे, चावल, गुड़ इत्यादि चढ़ाते हैं। घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है ओर देवी का फ्यूंली सबसे प्रिय पुष्प है।


हालांकि इस उतस्व के अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की बड़ी पूजा करते हैं और इस अवधि के दौरान इकठ्ठे हुए चावल, दाल और भेंट राशि से सामूहिक भोज पकाया जाता है।


बंसत आगमन के साथ पहाड़ के कोनो-कोनो में फ्योंली का पीला फूल खिलने लगता है। फ्योंली पहाड़ में प्रेम और त्याग की सबसे सुन्दर प्रतीक मानी जाती है। कहते हैं कि एक राजकुमारी का विवाह दूर काले पहाड़ के पार होता है, जहां उसे अपने मायके की याद सताती रहती है। वह सास से मायके भेजने की प्रार्थना करती है किन्तु सास उसे जाने नहीं देती है। मायके की याद में तड़पती फ्योंली एक दिन मर जाती है। फ्योंली को उसके मायके के पास दफना दिया जाता है, जिस स्थान पर कुछ दिनों बाद पीले रंग का एक सुंदर फूल खिलता है।इस फूल को फ्योंली नाम दे दिया जाता है और उसकी याद में पहाड़ में फूलों का त्यौहार मनाया जाता है।