बुधवार, 31 जुलाई 2019

मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मिली आजादी, राज्यसभा में ऐतिहासिक बिल पास...

संवाददाता : नई दिल्ली 


          मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिलाने के लिए लाये गये मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 को आज राज्यसभा की मंजूरी मिल गयी और इस तरह नरेंद्र मोदी सरकार का एक बड़ा चुनावी वादा पूरा हुआ। राज्यसभा में बिल के पक्ष में 99 मत मिले जबकि विरोध में 84 मत पड़े।



मुस्लिम महिलाएं इसके लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही थीं और मोदी सरकार ने उनका साथ देते हुए तीन तलाक विधेयक को पारित कराने के लिए पूर्व के कार्यकाल में भी प्रयास किये थे लेकिन प्रयास राज्यसभा में अटक जाते थे इस कारण बार-बार अध्यादेश से काम चलाना पड़ रहा था। राज्यसभा में तीन तलाक बिल को पास कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा था लेकिन सरकार के फ्लोर मैनेजमेंट की दाद देनी होगी कि वह इस महत्वपूर्ण विधेयक को पारित कराने में सफल रही। लोकसभा इसे गत सप्ताह ही पारित कर चुकी है और अब राज्यसभा की भी मंजूरी मिल जाने के बाद इसके कानून बनने की राह साफ हो गयी है। इससे पहले सुबह विधयेक को चर्चा और पारित करने के लिए राज्यसभा में पेश करते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक संबंधी विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के मकसद से लाया गया है और उसे किसी राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिये।


उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा एक फैसले में इस प्रथा पर रोक लगाने के बावजूद तीन तलाक की प्रथा जारी है। उधर, इस विधेयक पर हुयी चर्चा में भाग लेते हुए विभिन्न दलों के सदस्यों ने इसे अपराध की श्रेणी में डालने के प्रावधान पर आपत्ति जतायी और कहा कि इससे पूरा परिवार प्रभावित होगा। अन्नाद्रमुक, वाईएसआर कांग्रेस ने भी तीन तलाक संबंधी विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। विपक्षी दलों के सदस्यों ने इसका मकसद ''मुस्लिम परिवारों को तोड़ना'' बताया। विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने सवाल उठाया कि जब तलाक देने वाले पति को तीन साल के लिए जेल भेज दिया जाएगा तो वह पत्नी एवं बच्चे का गुजारा भत्ता कैसे देगा? उन्होंने कहा, ''यह घर के चिराग से घर को जलाने की कोशिश'' की तरह है।


उन्होंने कहा कि इस विधेयक का मकसद ''मुस्लिम परिवारों को तोड़ना'' है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में शादी एक दिवानी समझौता है। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि आप इसे संज्ञेय अपराध क्यों बना रहे हैं? उन्होंने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग की। राकांपा के माजिद मेनन ने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय ने इस बारे में कोई निर्णय दे दिया है तो वह अपने आप में एक कानून बन गया है। ऐसे में अलग कानून लाने का क्या औचित्य है?