प्रजा दत्त डबराल @ भोपाल मध्यप्रदेश
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 8 अगस्त, 2019 राष्ट्रपति भवन में आयोजित अलंकरण समारोह में नानाजी देशमुख (मरणोपरांत), डॉ. भूपेन्द्र कुमार हजारिका (मरणोपरांत) और प्रणब मुखर्जी को 'भारत रत्न' अलंकरण प्रदान किए।
नानाजी देशमुख (मरणोपरांत)
नानाजी देशमुख एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में कार्य किया।
उनका जन्म 11 अक्टूबर, 1916 को मराठवाड़ा के कदोली गाँव में हुआ और उनका नाम चंडिका प्रसाद रखा गया, परंतु हर कोई उन्हें प्यार से नाना कहा करता था। नाना शैशवकाल में ही अपने माता-पिता के प्यार और स्नेह से वंचित हो गए, लेकिन शुरुआत से ही वे बहुत प्रतिभाशाली थे। उनका ध्येय उच्च शिक्षा प्राप्त करना था, लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही लिख रखा था। 1939 में, वे बिरला कॉलेज में प्रवेश के लिए राजस्थान के पिलानी के लिए रवाना हुए और अगले ही वर्ष राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक बन गए।
15 अगस्त, 1940 को, नानाजी को संघ का कार्य शुरू करने के लिए गोरखपुर भेजा गया। उस समय उनकी जेब में मात्र 14 रुपये थे। प्रारंभ में, उन्हें एक के बाद एक विभिन्न स्थानों पर रहना पड़ा। अपने मिलनसार स्वभाव से वे महंत दिग्विजय नाथ, गीता प्रेस के संस्थापक भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार, कांग्रेस नेता बाबा राघव दास आदि जैसे प्रतिष्ठित लोगों के संपर्क में आए। विपत्तियों पर विजय प्राप्त करने की अपनी असाधारण योग्यता के द्वारा वे संघ की शाखाओं का तेजी से विस्तार करने में सक्षम हुए।
स्वतंत्रता के बाद, जनसंघ की स्थापना के दौरान नानाजी ने एक संगठनकर्ता और एक राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी उत्कृष्टता साबित की। जल्द ही, वे गैर-कांग्रेसी राजनीति का एक प्रमुख केंद्र बन गए और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एक सुयोग्य और अभिन्न साथी बन गए। 1968 में पंडितजी के असामयिक निधन के बाद, उन्होंने उनकी स्मृति में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की और उसके माध्यम से देश में एक वैचारिक संवाद की शुरुआत की। उन्होंने देश भर में जेपी आंदोलन के प्रति जनभावना जगाने में प्रमुख भूमिका निभाई और वे लोकनायक जय प्रकाश नारायण के घनिष्ठ और अंतरंग मित्र बन गए। आपातकाल में, जेल में बंद होने के दौरान उन्होंने जनता पार्टी की नींव रखी। 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई, हालांकि, उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। एक वर्ष के भीतर, उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ने की घोषणा कर दी।
वर्ष 1978 में, नानाजी ने सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए अपनी संपूर्ण ऊर्जा और अनुभव सार्वजनिक जीवन के प्रति समर्पित करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपना समूचा जीवन एकात्म मानववाद के दर्शन को जमीनी स्तर पर मान्यता प्रदान करने में, लगाने का प्रण कर लिया। गोंडा, बीड और चित्रकूट इस संकल्प की जीती-जागती मिसालें हैं। ग्रामीण विकास का चित्रकूट मॉडल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक पुनर्निर्माण का एक सुप्रसिद्ध उदाहरण है, जो सहज, सतत और अनुकरणीय है। 1999 में राष्ट्र की अग्रणी सेवा के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। वे आधुनिक युग के ऋषि थे, जिन्होंने अपना जीवन राष्ट्र सेवा में समर्पित कर दिया।
नानाजी देशमुख का 27 फरवरी, 2010 को निधन हो गया, और उनकी वसीयत के अनुसार, उनके शरीर को मेडिकल छात्रों को दान कर दिया गया।
डॉ. भूपेन्द्र कुमार हज़ारिका (मरणोपरांत)
डॉ. भूपेन्द्र कुमार हज़ारिका असम के एक सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक, गीतकार, संगीतकार, गायक, कवि और फिल्म निर्माता थे। के सादिया में जन्मे डॉ. हजारिका की शुरुआत बहुत साधारण परंतु निर्माता थे।
08 सितंबर, 1926 को असम राज्य के सादिया में जन्मे डॉ. हजारिका की शुरुआत बहुत साधारण परंतु सांस्कृतिक रूप से समृद्ध थी। छोटी उम्र में ही उन्होंने अपनी माँ से असम का धार्मिक बॉरगीत सीखा। उन्होंने प्रत्येक वर्ष होने वाले असम के लोकप्रिय बिहू उत्सव समारोहों में भी भाग लिया और उनमें प्रदर्शित असम और पूर्वोत्तर के स्थानीय लोगों की गहन विविधता, लोक सौंदर्य, आचार-व्यवहार, गीत, लय, नृत्य, कला तथा खानपान की जानकारी प्राप्त की और उससे बहुत प्रभावित हुए। असमिया संस्कृति के आधार, समन्वयपूर्ण शैलियों के अपूर्व मिश्रण को मूर्त रूप देते हुए, उन्होंने बाद में लोकप्रिय शहरी और अर्द्ध-शास्त्रीय भारतीय संगीत शैलियों को एक साथ जोड़ने में सफलता प्राप्त की।
सात साल की उम्र में उनकी प्रतिमा को पहचानते हुए, डॉ. हजारिका को असम की सांस्कृतिक विभूतियों और भारतीय संस्कृति के प्रवर्तकों, जैसे ज्योति प्रसाद अग्रवाल, बिष्णु प्रसाद राभा, और अन्य गुणी लेखकों, गायकों, कवियों, अभिनेताओं और कलाकारों का अनुभवी परामर्श प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने कॉटन कॉलेज गुवाहाटी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से शास्त्रीय शिक्षा प्राप्त की। उन्हें न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट करने के लिए विदेश यात्रा का अवसर भी मिला। इससे वे वैश्विक दृष्टिकोण पैदा कर सके और भारत के नव स्वतंत्र, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के आधुनिक और प्रतिबद्ध नागरिक के रूप में स्वयं को तैयार करने में कामयाब हुए।
स्वतंत्र भारत के प्रगतिशील नेताओं के प्रोत्साहन के बाद, डॉ. हजारिका ने भारतीयों को अभाव और आत्मत्याग से मुक्ति के बारे में जागरूक करने का प्रयास किया। यद्यपि उन्हें हिन्दी और अंग्रेजी का धाराप्रवाह ज्ञान था, फिर भी उन्होंने अपनी मातृभाषा असमिया में लिखा। उनकी विशद काव्यात्मक भावप्रवणता में मानव दशा और प्रकृति, इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ-साथ गहरी रोमानियत और आध्यात्मिक उत्साह विद्यमान था। बाद में, वे असमिया संस्कृति के एक ऐसे प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में उभरे, जिनसे प्रत्येक पीढ़ी को एक आवाज, पहचान और प्रेरणा मिलती रही। उनके 'विविधता के साथ एकता के मूल संदेश और दृष्टिकोण में केवल स्वतंत्र भारत में कठिन संक्रमण के दौर से गुजरने वाले असम और उसके पड़ोसी सीमावर्ती राज्यों के कई जातीय समूह ही नहीं वरन सभी भारतीय शामिल थे। उनके गीतों और कृतियों से पता चलता है कि उनमें जनसाधारण और स्त्रियों की दशा के प्रति सहानुभूति थी साथ ही साथ शिक्षित और अभिजात वर्ग को प्रेरित करने की भावना भी मौजूद थी। उन्होंने शांति को बढ़ावा देने तथा संगठित और बहु-सांस्कृतिक भारत की महानता को उजागर करने के लिए लेख लिखे और व्यक्तिगत योगदान दिया। ऑडियो-विजुअल विधा में उनकी डॉक्टरेट, फिल्म माध्यम के प्रति उनके समर्पण को अभिव्यक्त करती है। भारत लौटने के बाद उन्होंने अपनी स्वयं की फीचर फिल्मों और वृत्तचित्रों का लेखन और निर्देशन का कार्य शुरू किया और जीवन पर्यंत अन्य फिल्मों के लिए संगीत और गीतों की रचना की।
50 के दशक के अंत में, डॉ. हजारिका गुवाहाटी से कोलकाता चले आए ताकि फिल्म और संगीत उद्योग के टूडियो के करीब रह सकें। बंगाली में गीत लिखकर और गाकर, वे बंगाली भाषी समाज के घर-घर में प्रसिद्ध हो गए, इसमें पड़ोसी बांग्लादेश भी शामिल था जिसने उनके बांग्लादेश की स्वतंत्रता के कठोर संघर्ष के दौरान राष्ट्रगीत रूपी और आह्वान बनने वाले गीतों के सम्मान स्वरूप 2012 में उन्हें 'फ्रेंड्स ऑफ लिबरेशन वार' से सम्मानित किया। उनके गीतों और गायकी ने प्रत्येक वर्ग के श्रोताओं के दिलों को छू लिया। 'ब्रह्मपुत्र के बार्ड (कवि)' के रूप में विख्यात डॉ. हज़ारिका अपने प्रशंसकों के लिए प्रेरणा के बड़े स्रोत बने हुए हैं।
डॉ. हजारिका को 9वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1961) में उनके द्वारा निर्देशित शकुंतला के लिए सर्वश्रेष्ठ असमिया फीचर फिल्म; 23 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1975) में चमेली मेमसाब के लिए सर्वोत्तम संगीत निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार; पद्मश्री (1977); 'सिनेमा और संगीत के माध्यम से जनजातीय कल्याण तथा आदिवासी संस्कृति के उत्थान में उत्कृष्ट योगदान के लिए अरुणाचल प्रदेश राज्य सरकार से स्वर्ण पदक (1979); संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1987); दादासाहेब फाल्के पुरस्कार (1992); फिल्म रुदाली के लिए सर्वोत्तम संगीत पुरस्कार (1993), पद्म भूषण (2001); संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप (2008); असम राज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार असोम रत्न (2009); 2012 में पद्म विभूषण आदि विभिन्न सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
डॉ. भूपेन्द्र कुमार हज़ारिका का निधन 05 नवंबर, 2011 को हुआ।
प्रणब मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी श्री प्रणब मुखर्जी एक उत्कृष्ट राजनेता हैं, जिन्होंने पांच दशक से अधिक समय के अपने लंबे राजनीतिक जीवन में विभिन्न पदों पर रहकर राष्ट्र की सेवा की और देश के सर्वोच्च पद, भारत गणराज्य के राष्ट्रपति पर उनका निर्वाचन, इसकी पराकाष्ठा थी। उन्होंने भारत गणराज्य के 13वें राष्ट्रपति के रूप में 25 जुलाई, 2012 से 24 जुलाई, 2017 तक कार्य किया।
साधारण पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को स्वतंत्रता सेनानियों, कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी के सुपुत्र के रूप में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के छोटे से गांव मिराती में हुआ था।
मुखर्जी ने इतिहास और राजनीति विज्ञान में दो मास्टर डिग्री के साथ-साथ कोलकाता विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने कॉलेज के शिक्षक और पत्रकार के रूप में अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत की। राष्ट्रीय आंदोलन में अपने पिता के योगदान से प्रेरित होकर, मुखर्जी भारतीय संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के लिए चुने जाने के बाद 1969 में पूर्णकालिक सार्वजनिक जीवन के प्रति समर्पित हो गए।
मुखर्जी देश के विदेश, रक्षा, वाणिज्य और वित्त मंत्री के रूप में अलग-अलग समय पर सेवा करने की शानदार उपलब्धि के साथ शासन में अद्वितीय अनुभव रखने वाले व्यक्ति हैं। वे 1969 से पांच बार संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के लिए और 2004 और 2009 में दो बार संसद के निचले सदन (लोक सभा) के लिए निर्वाचित हुए और उसके बाद वे 2012 में राष्ट्रपति बने। वे पार्टी की शीर्षस्थ नीति निर्माण समिति कांग्रेस कार्यकारिणी के 23 वर्षों तक सदस्य रहे।
मुखर्जी ने, स्वर्गीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के अनुभवी सान्निध्य में रहकर राजनीतिक जीवन में तेजी से प्रगति की। उन्हें फरवरी, 1973 से अक्तूबर, 1974 तक औद्योगिक विकास; पोत परिवहन और परिवहन उप मंत्री बनाया गया और उसके बाद 1974-75 के दौरान वित्त राज्य मंत्री तथा 1975-1977 के दौरान राजस्व और बैंकिंग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया, तत्पश्चात, उन्होंने 1980-1982 के दौरान मंत्रिमंडल में वाणिज्य तथा इस्पात और खान मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1982 में पहली बार भारत के वित्त मंत्री के रूप में पदभार संभाला और 1980 से 1985 के दौरान संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के नेता रहे। बाद में, उन्होंने 1991 से 1996 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया और साथ ही 1993 से 1995 तक वाणिज्य मंत्री, 1995 से 1996 तक विदेश मंत्री रहे। उन्होंने 2004 से 2006 तक रक्षा मंत्री और 2006 से 2009 तक एक बार पुनः विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 2009 से 2012 तक दोबारा वित्त मंत्री तथा 2004 से 2012 तक, जब उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया, संसद के निचले सदन (लोक सभा) के नेता बने रहे। समूह
मुखर्जी ने 2004-2012 की अवधि के दौरान, 95 से अधिक मंत्री समूह/अधिकार प्राप्त मंत्री समूह (जीओएम/ईजीओएम) के अध्यक्ष के रूप में प्रशासनिक सुधार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार, यूआईडीएआई, आधार आदि की स्थापना जैसे कई मुद्दों पर सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों में अग्रणी भूमिका निभाई । सत्तर और अस्सी के दशक में उन्होंने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (1975) और भारत के आयात-निर्यात बैंक के साथ-साथ नाबार्ड-राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (1981-82) की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने ग्रामीण इलाकों और विदेशों, खास तौर से खाड़ी क्षेत्र में राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखाओं के बड़ी संख्या में विस्तार के लिए अथक कार्य किया, इससे कानूनी रूप से भेजे जाने वाले धन की मात्रा में काफी वृद्धि हुई। श्री मुखर्जी ने पंचवर्षीय योजनाओं के लिए 1991 में केन्द्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे के लिए एक संशोधित फार्मूला भी तैयार किया जिसे गाडगिल-मुखर्जी फार्मूला के नाम से जाना गया।
मुखर्जी के पास व्यापक राजनयिक अनुभव है और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक के गवर्नरों के बोर्ड में कार्य किया है। उन्होंने 1982, 1983 और 1984 में राष्ट्रमंडल वित्त मंत्रियों के सम्मेलनों,1994, 1995, 2005, 2006, 2007 और 2008 में संयुक्त राष्ट्र महासभा, 1995 में ऑकलैंड में राष्ट्रमंडल सरकार प्रमुखों की शिखर बैठक, 1995 में कार्टाजेना में गुटनिरपेक्ष विदेश मंत्री सम्मेलन और 1995 में बांडुंग में अफ्रीकी एशियाई सम्मेलन की 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडलों का नेतृत्व किया है।
एशियाई सम्मेलन की 40वीं वर्षगांठ के अवसर 8. एक प्रखर वक्ता और विद्वान मुखर्जी की बौद्धिक क्षमता और राजनीतिक कौशल के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों, वित्तीय मामलों और संसदीय प्रक्रिया के उत्कृष्ट ज्ञान की अत्यंत सराहना की जाती है। भारत के जीवंत बहुदलीय लोकतंत्र के प्रमुख अंग विविध राजनीतिक दलों के बीच सर्वसम्मति बनाने की योग्यता के कारण जटिल राष्ट्रीय मुद्दों पर आम सहमति बनाने में उनकी भूमिका प्रशंसनीय रही है।
मुखर्जी एक गहन अध्येता हैं और उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था और राष्ट्र निर्माण पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं। वे खाली समय में पढ़ने, बागवानी करने और संगीत सुनने का शौक रखते हैं। उनकी रुचियां सादा किस्म की हैं, और वे कला वान संरक्षक हैं। उन्हें दिए जाने वाले कई पुरस्कारों और सम्मानों में 2008 में भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण, 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार और 2011 में सर्वश्रेष्ठ प्रशासक पुरस्कार शामिल हैं।
प्रणब मुखर्जी को ग्यारह विदेशी विश्व विद्यालयों और सात भारतीय विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधियां प्रदान की गई हैं। उन्हें 2018 में कल्याणी विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि, 2018 में आईआईईएसटी, शिबपुर द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2018 में चटगांव विश्व विद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2017 में गोवा विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2017 में जादवपुर विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2016 में काठमांडू विश्वविद्यालय, नेपाल द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2015 में रूसी राजनयिक अकादमी द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि: 2015 में बेलारूस स्टेट विश्वविद्यालय द्वारा प्रोफेसर की मानद उपाधि; 2015 में हिब्रू विश्व विद्यालय, येरूशलम, इजराइल द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2015 में जॉर्डन विश्वविद्यालय द्वारा राजनीति विज्ञान में डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2015 में अल-कुद्स विश्वविद्यालय, फिलिस्तीन द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2014 में कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट (लॉ) की मानद उपाधि; 2013 में इस्ताम्बुल विश्वविद्यालय द्वारा राजनीति विज्ञान में डॉक्टरेट की मानद उपाधि; 2013 में ढाका विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ लॉज की मानद उपाधि; 2013 में मॉरीशस विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ सिविल लॉ की मानद उपाधि; 2012 में विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकीय विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ साइंस की मानद उपाधि; 2012 में असम विश्वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि; वर्ष 2011 में वोल्वरहैम्पटन विश्वविद्यालय, यूके द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि तथा 1984 में जबलपुर विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई। उन्हें 1984 में न्यूयॉर्क से प्रकाशित यूरो मनी' जर्नल के एक सर्वेक्षण में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पांच वित्त मंत्रियों में से एक का दर्जा दिया गया और 2010 में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के जर्नल “एमर्जिंग मार्केट्स द्वारा एशिया का फाइनेंस मिनिस्टर ऑफ द ईयर घोषित किया गया था।