रविवार, 27 अक्तूबर 2019

अमृत-कलश कुक्ष में संग्रह जो किया,रावण मरा नहीं वह अमर जिया...

कवि नारायण डबराल की  कलम से  :- 


रावण 


अमृत-कलश कुक्ष में संग्रह जो किया
रावण  मरा  नहीं  वह  अमर  जिया।
काश कि रावण  स्थाई  मृत्यु  पाता
त्रेता से  अब  तक कोई  न जलाता।


तब था रावण एक,दश शिर  वाला
प्रति  वर्ष  अब  लाखों  नये  उभरते ।
हर साल छोटा रावण बड़ा हो जाता 
शहर,गलियों में नया प्रगट हो जाता ।


हर वर्ष  जलाते  हम  लाखों रावण 
खुशी  से  सजाते  क्या है  कारण।
काश हम रावण को  उभरने ना देते
फिर सजा देकर उसे जलने ना देते।


हम  तुम  स्वयं  रावण  पैदा  करते
माँ पिता गुरू मित्र से  ये न सँवरते ।
जितने ही इन्हें हम अग्नि में  फूंकते
उससे कई अधिक हर साल उभरते।


कोई तो तोड़ होगा अमर अमृत का
हर  वर्ष  जन्म  की  पुनरावृत्ति  का।
काश शिव, मंथन विष पूरा ना पीते
दो  बूँद  राक्षस की नाभि में  पिरोते।


आज  रावण  को  बढ़ने ही  ना दो
शिशु  कुबुद्धि  साँकल  में जड़ दो।
माँ,बाप,गुरू,समाज का धर्म है ये 
उस अमृत  की काट का कर्म है ये।


वरना  रावण  सर्वदा अमर  रहेगा
दस नहीं  लाखों सिरों में  उभरेगा।
अमृत का तोड़, विष अब अपनाएँ
रावण बनने से पहले उसे जलायें।



( कविता में कवि ने दो संदेश देने का प्रयास किया है )