संवाददाता : नई दिल्ली
विद्युत मंत्रालय के अधीनस्थ ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) ने 9 से 14 दिसम्बर, 2019 तक मनाये जा रहे 'ऊर्जा संरक्षण सप्ताह' के अन्तर्गत 12-13 दिसम्बर, 2019 को नई दिल्ली स्थित स्कोप कन्वेंशन सेंटर में 'कम ऊर्जा की खपत वाली कूलिंग' पर एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की। यह दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला स्वच्छ ऊर्जा मंत्रिस्तरीय (सीईएम) की 'सीड' पहल के तहत अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के सहयोग से आयोजित की गई।
कूलिंग सेक्टर के विकास एवं कार्यान्वयन, नीतियों और कार्यक्रमों पर टिप्पणी करते हुए भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय में सचिव श्री संजीव सहाय ने कहा, 'भवनों, वाहनों और शीत श्रृंखला यानी कोल्ड चेन सेक्टर में विभिन्न स्थानों की कूलिंग करने की बढ़ती मांग एक ऐसी चुनौती है, जिसका समाधान निकालना जरूरी है। नई दक्ष प्रौद्योगिकियों की तैनाती या उपयोग के लिए इस सेक्टर में प्रभावकारी नीतियां और योजनाएं बनाने की आवश्यकता है। बीईई कम ऊर्जा की खपत वाली कूलिंग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहलों को कार्यान्वित करता रहा है और इसने कोल्ड चेन जैसे नए सेक्टरों में नीतिगत रूपरेखा को विकसित करने के लिए अनेक अध्ययन कराये हैं।'
इस कार्यशाला ने विभिन्न सेक्टरों और प्रतिष्ठानों में कम ऊर्जा की खपत वाले कूलिंग उपकरणों के उपयोग में तेजी लाने के अवसर तलाशने के लिए वैश्विक विशेषज्ञों, उद्योगों और नीति निर्माताओं के लिए एक उल्लेखनीय प्लेटफॉर्म की भूमिका निभाई है। इस कार्यशाला का उद्देश्य कम ऊर्जा की खपत वाले उपकरणों, उपस्करों एवं प्रणालियों के विकास एवं उपयोग में तेजी लाने वाले उपायों की रूपरेखा तैयार करना था। इससे विभिन्न स्थानों की कूलिंग एवं कोल्ड चेन से जुड़ी नीतियों, प्रौद्योगिकियों, नवाचार, नई अवधारणाओं और कारोबारी मॉडलों को तलाशने में मदद मिली।
इस कार्यशाला में विभिन्न नियामकीय निकायों के प्रतिनिधियों, नीति निर्माताओं, सरकारी अधिकारियों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के प्रतिनिधियों और विश्व भर के औद्योगिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस दो दिवसीय आयोजन के दौरान एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें कम ऊर्जा की खपत वाले कूलिंग सेक्टर से जुड़ी नई एवं अभिनव प्रौद्योगिकियों को दर्शाया गया। इन पहलों का उद्देश्य ऊर्जा मांग को नियंत्रण में रखने के साथ-साथ उन ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन को घटाकर देश में ऊर्जा की तीव्रता में कमी लाना है, जो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। भारत ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) को पेश किए गए दस्तावेज के तहत वर्ष 2030 तक जीएचजी के उत्सर्जन में 33 से 35 प्रतिशत तक की उल्लेखनीय कमी करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।