सोमवार, 20 अप्रैल 2020

"भगोड़ा" प्रो.वीरेन्द्र सिंह नेगी की कलम से कहानी...

हिमालयी साहित्य खजाना श्रृंखला के अंतर्गत "भगोड़ा" प्रो.वीरेन्द्र सिंह नेगी की कलम से कहानी...


 " भगोड़ा "


      आज पंडित जी घर आने वाले हैं। मां ने सुबह से ही घर के बाहर और अंदर साफ सफाई कर दी है। अंदर से नई दरी और चटाई निकालकर बिछा दी गई है। बहुत संदेशे भिजवाने के बाद आज पंडित जी के आने का मुहूर्त निकला है। आज दिनभर वे वहीं रहेंगे सभी बच्चों के जन्म पत्री देखेंगे। आज सारे मोहल्ले  में रौनक बढ़ी हुई सी लग रही है। आसपास की महिलाएं भी खेत जंगल से अपना काम काज जल्दी समेट कर घर लौट आई हैं। पंडित जी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद ले सभी अपने बच्चों की भविष्य रेखा जानने के लिए उत्सुक हैं। 


कुंदन का जीवन बड़ी अनिश्चितता भरा होगा, बहुत बड़ा धावक बनेगा। पढ़ाई लिखाई का योग कम बनता दिख रहा है पर स्वास्थ्य और सौंदर्य का खूब धनी है।


सुन कर कुंदन की मां को कुछ निराशा और थोड़ी आशा हुई। वह अंदर गई और पंडित जी के खाने पीने का हिसाब देखने लगी। बाकी सब अपने बच्चों की जन्मपत्री लिए पंडित जी के वचनों से निकली बातों से अनुमान लगा और हंसी ठिठोली करते हुए प्रश्न पर प्रश्न पूछे जा रहे हैं।


अब मां ने कुंदन पर अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया। अपनी गाय का दूध जिन घरों में बांधा हुआ था उनमें कटौती करने लगी और कुंदन को सामान्य खाने के साथ सुबह शाम दूध, घी, शहद व सभी अच्छी भली चीजें देने लगी। अपने कुंदन को पढ़ा लिखा कर एक बड़ा आदमी बनाने‌ का सपना अभी भी उस के मन में जीवित था। पंडित जी की बातें सुनकर कुंदन के मन में  खेलकूद वाली बात घर कर गई। वह गांव भर में दौड़ता फिरता। अब कोई भी काम गांव से बाहर जाने आने का हो सभी कुंदन को बताते हैं। कुंदन भी फर्राटे से दौड़ता हुआ वह काम करता। उसे लगने लगा है कि बहुत नहीं तो वह धावक तो बन ही जाएगा।



गांव का जीवन तमाम व्यस्तताओं के बाद भी थोड़ा नीरस होता है। अक्सर आस-पड़ोस के गांवों से खबर आती कि फलाने का लड़का भर्ती हो गया या पढ़ाई के लिए शहर चला गया या शहर में नौकरी लग गई। गांव के पढ़ने लिखने वाले बच्चों के लिए भटकाने के लिए ऐसी खबरें बहुत विचलित और बेचैन करने वाली होती। कभी-कभी ऐसी भी खबर आती है कि किसी गांव के एक दो लड़के पढ़ाई से मन चुराकर घर से भाग गए। वे भाग कर आसपास के कस्बों और शहरों में चले जाते हैं। कुछ वर्षों तक छोटे-मोटे काम धंधा और रोजगार से थोड़ा बहुत कमा धमा कर घर वापस लौट आते। गांव के युवाओं की अक्सर यही नियति देखने को मिलती। 


खेती-बाड़ी, जंगल, पशु और घर परिवार में उलझे युवा उम्र की एक खास दहलीज पार कर शादी विवाह के योग्य हो जाते हैं। समाज में अपनी स्वीकार्यता के लिए उन्हें कुछ काम धंधा या कमाई से जुड़ने की बाध्यता भी खड़ी हो जाती है। 


कुंदन बड़ा हो रहा है। बारहवींवीं की परीक्षा के बाद कुंदन ने बीए में एडमिशन लेने की ठानी। अब घर से दूर रहना होगा या रोज-रोज गांव से तीस पैंतीस किलोमीटर दूर चिन्यालीसौड़ जाना आना करना पड़ेगा। गांव में सब कुछ है। पेट काट कर फीस, लत्ता कपड़ा, किताब, खाना-पीना और शांत जीवन। परंतु नहीं है तो हाथ में पैसा। कुंदन को लगने लगा कि मां पर और बोझ नहीं डालूंगा। आगे पढ़ाई न करने का निश्चय उसके मन में घर कर गया। अब  केवल दुविधा मां को अपना निर्णय बताने की है। कई दिनों तक मन मसोसकर इसी सोच-विचार में  गुमसुम बिताने के बाद कुंदन ने फैसला कर लिया क्या वह आगे नहीं पढ़ेगा। गंगोत्री की  घाटी में बसे गांव से निकलकर चिन्यालीसौड़ तक का खर्च निर्वहन करने में असमर्थ गांव का युवा नौजवान एक अज्ञात भविष्य की तलाश में पहाड़ों से निकलकर समय के साथ बहने को तैयार हो गया। सुना था इन पहाड़ों का पानी और पहाड़ की नौजवानी को पहाड़ को सींचने के लिए रोकना बहुत दूभर कार्य है। यह पानी भी बस बहने को तैयार रहता है।


मां से फीस लेकर एडमिशन के बहाने कुंदन निकल पड़ा चिन्यालीसौड़ को। रास्ते में आज कुछ ज्यादा ही लोग मिल रहे थे और कुंदन को शुभकामनाएं दे रहे थे खूब पढ़ना बेटा, बस एक दिन बड़ा आदमी बन जाना। कुंदन ने सड़क पर पंहुच कर चंबा जाने वाली बस पकड़ ली। गांव के तीन चार लोग भी साथ बैठे। दो चिन्यालीसौड़ से पहले ही उतर गए एक् ने आगे जाना था। कुंदन को चिन्यालीसौड़ तक का टिकट लेना पड़ा। वहां उतर कर उसने दूसरी गाड़ी पकड़ी और ऋषिकेश जाने का फैसला किया।


उस शाम को कुंदन गांव नहीं पहुंचा। मां को चिंता होने लगी‌। सड़क से आने वाले लोगों को पूछा कि कुंदन मिला था। सभी आने जाने वालों ने बताया कि कुंदन नहीं मिला। अगले दिन फिर कुंदन का इंतजार रहा। कुंदन लौट कर नहीं आया। हर आने जाने वाले से मां कुंदन के बारे में पूछती। कोई कुंदन का अता पता नहीं बताता। दिन, सप्ताह महिने बीतने लगे। अब लोग ही आते जाते मां से पूछते कि कुंदन की कोई खबर आई। मां खामोश अपने काम में लगी रहती है। गांव के लोग आपस में खुसर पुसर करने लगे हैं। कुंदन घर से भाग गया है।



बस में बैठते ही कुंदन ने आंखें बंद की और सो गया। उसके पास कोई सामान नहीं एक सौ का नोट लेकर बाढ़ का पानी बहता हुआ मैदानों में पहुंच गया। उस रात कुंदन गंगा किनारे ही सो गया। सुबह आरती के बाद बंटने वाले प्रसाद वितरण में उसने पुजारियों और दान दाताओं का हाथ बंटाया।


बस में बैठते ही कुंदन ने आंखें बंद की और सो गया। उसके पास कोई सामान नहीं एक सौ का नोट लेकर बाढ़ का पानी बहता हुआ मैदानों में पहुंच गया। उस रात कुंदन गंगा किनारे ही सो गया। आरती के बाद बंटने वाले प्रसाद वितरण में उसने पुजारियों और दान दाताओं का हाथ बंटाया। अगले दिन सुबह कुंदन ने गंगा में स्नान किया और फिर से मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ प्रसाद बांटने वालों का हाथ बंटाते हुए सुबह का नाश्ता जुटाया। दानदाता सेठ ने सारा साजो सामान समेट कर भंडार गृह में रखने को कहा। कुंदन ने वो काम भी कर दिया। 


तीन दिनों तक साढ़े पांच फुट ऊंचा, अच्छे डील डौल और भोले चेहरे वाला कुंदन मन लगाकर पूरी श्रद्धा से सुबह शाम प्रसाद वितरण के समय मंदिर की सीढ़ियों पर पहुंच जाता।


एक सुबह कुंदन की आंख खुली। गंगा किनारे आरती शुरू हो चुकी है। आज कुंदन देर से सोकर उठा। उसका शरीर टूटा टूटा सा लग रहा था उसे कमजोरी सी महसूस हो रही थी। इतने दिनों बाद कुंदन को मां की आवाज मां के हाथ का बना खाना गांव में अपनी पूछताछ और बाकी सब याद आया। उसकी आंखों में आंसू छलक उठे। फिर से मंदिर की सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा। उसने देखा दानदाता आज प्रसाद नहीं बांट रहे हैं। नीचे सड़क पर उनकी गाड़ी खड़ी है। वह गाड़ी में बैठने से पहले आसपास के मांगने वालों को दक्षिणा बांट रहे हैं। कुंदन दूर से यह सब देखता रहा। उसने जेब में हाथ डाला अभी भी उसकी जेब में साठ रुपए हैं। सभी को तसल्ली से दक्षिणा देने के बाद दानदाता सेठ जी ने चारों ओर नजरें घुमा कर देखा। दूर से कुंदन को देखते ही सेठ जी ने उसे पहचान लिया। इशारे से अपनी ओर बुलाया और पचास रुपए उसकी ओर बढ़ा दिए। कुंदन को यह बेहद अपमानजनक लगा। उसमें नमस्कार करते हुए पैसे लेने से इनकार कर दिया। तभी सेठ जी का परिवार अपना सामान लिए सड़क पर आ गया। कुंदन को देखते ही उन्होंने बड़ी आशा भरी निगाह से सामान गाड़ी में चढ़ाने का आग्रह किया। कुंदन को इसमें कोई बुराई नहीं लगी। उसने खुशी खुशी सारा सामान गाड़ी में चढ़ा दिया। सेठ जी के लड़के ने देख लिया था कि कुंदन ने पैसे लेने से मना कर दिया है। उसने कुंदन को पास बुलाया और अपने बटुए से एक कार्ड निकाल कर कुंदन के हाथ में थमा दिया। कहा कि जब कभी जरूरत हो याद कर लेना।


बिना सोचे समझे घर से निकले कुंदन को बीस पच्चीस दिन ऋषिकेश की गलियों में भटकते हो गए। कुंदन हो किसी प्रकार का कोई आभास नहीं था कि वह गांव से एक भगोड़े की तरह भाग आया है।


कुंदन ने इन दिनों में अपने आत्मसम्मान मजबूरी और  विवशता से समझौता नहीं किया। वह दिन भर सड़कों पर भटकता और किसी का काम कर मदद कर कुछ ऐसा करता कि उसके खाने का बंदोबस्त हो जाता।


अचानक एक दिन मंदिर का सब काम बढ गया। सारा शहर मंदिर में जुटने लगा। कुंदन के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था कि देवभूमि कहलाने वाले गंगोत्री क्षेत्र बहने वाले गंगाजल को ऋषिकेश में इतनी मान्यता प्राप्त है। दिन भर हजारों की संख्या में लोग यहां जुटने लगे। कुंदन को कुछ समझ नहीं आया। पुजारी जी ने उससे मंदिर में आए भक्तों के स्वागत और भजन, भोजन की व्यवस्था देखने का आग्रह किया। कुंदन गांव में भी हर किसी का काम एक बार कहने पर दौड़ कर कर दिया करता था। उसकी प्रकृति यहां भी उसकी पहचान बनी रही‌। धावक की तरह दिन भर में हजारों लोगों की व्यवस्था देखने लगा। पहाड़ की मिट्टी पानी, चढ़ाई उतराई ने उसे थकना नहीं सिखाया था।



एक दिन अचानक जब कुंदन गंगा किनारे अपनी जगह पर रोज की तरह लेटा हुआ था तो उसके गांव के दो साथी वहां पहुंचे। उन्हें देखते ही कुंदन उठ कर बैठ गया और उनसे मिला। एक दूसरे का हाल पूछते हुए फिर होटल में खाना खाने  गए। उन्होंने बताया कि  गांव के लोग परेशान है कि कुंदन भाग कर कहां चला गया। कुंदन ने कोई जवाब नहीं दिया। जवाब था भी नहीं और कुंदन को अपने गांव से निकल आने का कोई दुख भी नहीं था। मां का ध्यान कर कुंदन कुछ देर के लिए उदास हुआ पर फिर बातचीत में शामिल हो गया। वे दोनों दिल्ली जा रहे थे उन्होंने बताया कि गुड़गांव में एक बिल्डर के पास काम करते हैं। अपनी जिंदगी में पूरी तरह से खाली कुंदन उनके साथ हो लिया।


गांव से निकलकर तीन महीने ऋषिकेश में बिताने के बाद अब कुंदन गुड़गांव पहुंच गया है। जहां गांव में कुंदन के बिना किसी के घर का कोई भी काम न चलता था और ऋषिकेश में बिना काम के वह मंदिर की सीढ़ियों, खाने के ढाबों और दुकानों में गाड़ियों से समान उतार ले चढ़ाने का काम करता था गुड़गांव पहुंचकर कुंदन को लगा की अब वह दुनिया का सबसे बेकार आदमी है। इस शहर में हर आदमी चलता है गाड़ियों के पीछे भागता है तो कभी गाड़ियों में भागता है। उसे यह भी लगा कि यहां कोई किसी का नहीं  होता है। दोस्त सुबह सुबह काम पर निकल जाते। कुंदन दोस्तों के आने तक खाना बनाकर रखता। वे साथ मिलकर रात का खाना खाते और और इधर उधर की बातें कर सो जाते।


एक शाम कुंदन में खाना बनाकर तैयारी करके रखी हुई थी। दोनों दोस्त जल्दी-जल्दी घर में घुसे उनके चेहरे पर बहुत परेशानी झलक रही थी। वे अपने साथ दो बड़े सूटकेस लेकर आए थे। कुंदन के पूछने पर उन्होंने बताया की यह पैसा बॉस ने उन्हें संभाल कर रखने को कहा है। कुंदन को समझ नहीं आया इसमें परेशानी की क्या बात है। उन्होंने खाना खाया और फिर इधर उधर की बातें कर सो गए। सुबह उठकर वे दोनों दोस्त फिर से काम पर निकल गए। कुंदन भी घर में ताला डाल कर रोज की तरह इधर उधर घूमने निकल पड़ा। वह अक्सर दिन भर घूमता और शाम होते ही घर पहुंच कर खाना बनाने की तैयारी करता। दिन भर घूम कर जब वह लौटा तो देखा  कमरे पर पुलिस आई हुई है। कुंदन थोड़ी दूरी पर ही रुक गया। उसने देखा कि पुलिस उसके दोनों दोस्तों को पकड़कर ले जा रही है। बहुत दूर खड़ा रहा। उसने अपने गुड़गांव में रहने का सहारा भी हाथ से जाते हुए देखा। रात को ही उसने दोस्तों को अस्सी लाख रुपए गिनते हुए देखा था। उसे विश्वास नहीं हुआ कि यह एक सपना था या सच। दोस्तों के घर खर्च से बचें पैसे में से उसकी जेब में अब दो सौ रुपए हैं। रात सड़क पर बितानी है और कल का भरोसा नहीं। कुंदन को समझ नहीं आ रहा कि कल वह क्या करेगा।  एक सप्ताह में ही उसने महानगर का जो रूप देखा उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसे लगने लगा था कि वह माया नगरी में आ गया है। 


अगले दिन हवा में उड़ते हुए लहराते बुलबुले की तरह वह इस मायानगरी की गर्म हवा में किसी भी समय पलक झपकते ही गायब होने के कगार पर था। उसने कल रात से कुछ नहीं खाया है। एक अनजान जगह पर बिना किसी ठिकाने की उसे कोई आस नजर नहीं आ रही है। गंगोत्री घाटी के रहने वाले को जीवन में पहली बार खाना तो क्या पानी भी खरीद कर पीने की नौबत आ गई। इतने महीनों बाद कुंदन को पहली बार गांव की याद आई। मां और गांव के सगे संबंधियों का ध्यान आते ही कुंदन ने मन को कड़ा किया। निश्चय किया गांव नहीं जाऊंगा। कभी पार्क तो कभी फ्लाईओवर के नीचे रात बिताते हुए कुंदन नदी की धारा में तिनके की तरह बहते हुए दिन काट रहा है। एक दिन अचानक उसने जेब से सेठ जी के बेटे का दिया कार्ड देखा। उसे पढ़ने पर पता लगा की उस पर लिखें दो पतों में से एक गुड़गांव का है। कुंदन को भंवर में डूबती जीवन नैया किनारे लगती दिखाई दी। वह पता ढूंढते हुआ एक बड़े बिल्डर के ऑफिस में जा पंहुचा। घंटा दो घंटा इंतजार करने के बाद सेठ जी के बेटे से उसकी मुलाकात कराई गई। सेठ जी के बेटे की उसे अपने ड्राइवर के साथ भेज कर दो जोड़ी कपड़े और जूते खरीदने को भेजा और उसी के साथ रहने को कह दिया।


कुंदन को एक ठिकाना मिल गया। वो ड्राइवर के साथ ही ऑफिस जाता और दिनभर सेठ जी के बेटे के साथ इधर उधर के कामों में साथ रहता। उसके रहने और खाने का प्रबंध हो गया। घर से निकले हुए छः महीने के बाद अब कुंदन को कुछ सुकून मिलने लगा। सेठ जी का बेटा कुंदन हो हर वक्त अपने साथ रखता। कागज पत्र, पैसे और लिखा पढ़ी के काम में वह कुंदन पर खूब भरोसा करता।



सेठ जी का बेटा एक नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। दो सौ करोड़ रुपए की बिल्डिंग के लिए सौ करोड़ का लोन लेना है। लगातार छह सात दिन सेठ जी के बेटे के साथ बैंक से लोन लेने के लिए कुंदन भी साथ गया। कई दिनों तक एजेंटों को चाय नाश्ता, दोपहर का लंच, शाम की शराब पार्टियां और महंगे डिनर कराने के बाद उनका लोन पास हो गया। इधर बाकी सौ करोड़ के लिए निवेशकों व खरीददारों से भी  मार्केट से पैसा उठाया गया। कुंदन एक बार फिर करोड़ों रुपए गिनने लगा। सेठ जी के बेटे को कुंदन पर खूब भरोसा था। अब उनके पास 4 जोड़ी कपड़े और 2 जोड़ी जूते भी आ गए। करोड़ों रुपए का भरोसा पर कुंदन ने कभी तनख़ाह तक की बात सेठ जी के बेटे से नहीं की। सेठ जी के बेटे के साथ वह मायानगरी के दिन और रात के  रंग देख रहा था। उसने देखा किस तरह से अमीरों की जिंदगी में ऐसो आराम और अय्याशी के रंग होली के गुलाल की तरह बिखरे हुए हैं। तीन महीने के भीतर ही कुंदन का माया नगरी की चकाचौंध से मन उचटने लगा। सेठ जी का लड़का तीन तीन चार चार दिन के लिए शहर से बाहर जाता और वापिस आता तो पांच सितारा होटलों और फार्म हाउसेस में उसकी ऐसी जिंदगी कुंदन को देखने को मिलती जो उसे बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती।


एक दिन जब सेठ जी का लड़का शहर से बाहर गया हुआ था। उस दिन कुंदन अपने साथी ड्राइवर के साथ रोज की तरह ऑफिस पहुंचा। ऑफिस में तीन चार सौ लोग भीड़ लगाए खड़े थे। भीड़ को चीरते हुए ड्राइवर और कुंदन ऑफिस के अंदर गए। वहां आए लोगों ने ऑफिस के स्टाफ के साथ मारपीट कर पुलिस बुलाई हुई थी। कुंदन को समझते देर न लगी। बैंक, निवेशकों और खरीददारों से करोड़ों रुपए लेकर तीन महीने से अय्याशी कर रहा सेठ जी का लड़का अभी तक अपने प्रोजेक्ट को शुरू भी नहीं कर सका था। लोगों में काफी गुस्सा था। अपने पैसे वापस मांग रहे थे। कुंदन को याद आया की सेठ जी के लड़के ने बैंक से लोन‌ लिए पचास करोड़ रुपए तो उस बैंक में डाले हैं जहां हैं जहां से लोन की किस्तें जानी है। बाकी पचास करोड़ रुपए उसने अपनी अय्याशी में लगा दिए। लोगों से लिए रुपए का भी कुछ अता पता नहीं। इतने दिनों तक रात दिन उसके साथ रहकर कुंदन को यह भी पता था कि प्रोजेक्ट पर कोई काम नहीं हो रहा। कुंदन को सब कुछ समझ आ गया। पुलिस ने आकर स्टाफ को लोगों से छुड़ाया। अगले ही दिन कुंदन जब सुबह तैयार होकर ड्राइवर के साथ सेठ जी के बेटे को लेने एयरपोर्ट निकला तो एयरपोर्ट पर ही पुलिस में सेठ जी के लड़के को गिरफ्तार कर लिया। गंगा का बहता पानी कभी कभी बांध में रोक लिए जाने पर किनारे पर जैसे थपेड़े मारता है वैसा ही हाल कुंदन का हो गया।


सुबह सुबह ड्राइवर ने कुंदन को हड़बड़ा कर उठाया। उसने बताया कि सेठ जी के सभी ठिकानों पर  रेड पड़ गई है। बदहवास से वे दोनों कमरे खाली कर वहां से भागे। सड़क पर पंहुच कर दोनों अलग अलग हो गए। दिन भर भटकते भटकते वह आईएसबीटी पंहुचा। वहां से रात नौ बजे की बस पकड़ कर ऋषिकेश के लिए निकल गया। सुबह कुंदन ने खुद को एक बार फिर से मंदिर के सामने खड़ा पाया। मंदिर की सीढ़ियों की तरफ बढ़ने पर कुंदन की नजर अखबार बेचने वाले पड़ी। बड़े-बड़े अक्षरों में खबर छपी थी गुड़गांव के बिल्डर के घोटाले में कई लोग गिरफ्तार और कुछ लोग अभी भी गायब। पढ़ते कुंदन का दिमाग सकपकाया। अखबार उठाकर सारी खबर पर डाली। गांव घोटाले के भगोड़ों की कोई  पहचान नहीं हो पाई थी। उसमें उनके नाम भी नहीं लिखे थे। कुंदन मंदिर की सीढ़ियों से वापस लौट गया। पहाड़ के बस अड्डे से उसने सीधा गंगोत्री की बस पकड़ी और गांव लौट गया। माना कि इस घोटाले में उसकी कोई भूमिका नहीं थी पर उसके मन में एक भगोड़े सा एहसास उसे कचोट रहा था। देर रात भागकर फिर वही पहुंच गया था यहां से वह एक दिन भाग निकला था।