सोमवार, 25 मई 2020

" दूरियां " कवयित्री कुसुम डबराल की कलम से...

कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम डबराल की कलम से :-


" दूरियां "


गुरबतें जमीं से
दूरियां आसमां से हो ही गयीं
मजिंलें थी तो अपनी ही
पर
फासलों की हो ही गयीं
हसरतें तमाम थीं
ख़ुश होने जीने की
चाहते ख़ूब थी
आसमां में उड़ने
और
मीलों चलने की
कदम मैने बढ़ाए थे 
तेज़ी से निकलने को
कदम बढ़ते रहे
राहें चलती ही गई
बदनसीबी थी बड़ी ज़िद्दी
मेरे हिस्से हो ही गयीं
क्योंकि
कदम ज़मीं पर थे
और राहें थी ज़मीं की ही
मजिंलें तो अपनी थी ही नहीं
वो आसमां सी हो ही गयीं ।