कवि एवं अभिनेता प्रकाश जोशी की कलम से :-
" उम्र किताबो के सफ़ो की तरह पलट दी जाती है "
उम्र किताबो के सफ़ो की तरह पलट दी जाती है
थकान होने पर मोड़ दी जाती है, एक तरफ़ से
इस ज़िम्मेदारी के साथ कि फिर पढ़ी जाएगी
जैसे आदमी खो देता है किसी भीड़ मे ख़ुद को
फिर थककर ठहर जाता है किसी इन्तेज़ार में
सफ़े पलटने पर जब कुछ समझ नही आता
तो उसी वक़्त अधपढ़ी छोड़ भी दी जाती है
अक्सर धूललग जाती है किताबो को पड़े-पड़े
जैसे इंसान कुछ ना करने पर बेकार हो जाता है
कई पुरानी बातो की तरह खींच दी जाती है
लकीरें सफ़ो पर बड़ी बारीक़ी से
बड़ी बारीक़ी से आदमी भी पलटता रहता है ख़ुद को
कितनी बार कितना कुछ छूट जाता है,
जब रह जाता है चिपका,एक पन्ना दूसरे से
एक दूसरे से जबरन लिपटे हुए रिश्ते
कितना कुछ मिटा देते है,एक दूसरे का
किताब के मध्य तक आते-आते
धीमी हो जाती है कहानियां
इंसान भी एक वक्त के बाद ख़ुद से ऊबने लगता है
कागज़ की तरह पीला पढ़ जाता है,
आदमी का चेहरा भी
वक़्त के साथ बूढ़ी होने लगती है किताबें भी
कही से जिल्द उधड़ती है
कही से सफ़े ख़ुद ही को कुरेदने लगते है,
तो कही-कही से धुँधला होने लगता है सियाही का रंग
जैसे एक रोज़ इंसानी रगो में ख़ून का दौरा घटने लगता है ना,
झुकाने लगता है ख़ुद का वज़न ख़ुद ही को,
जोड़ों को दर्द बढ़ने लगता है ठीक वैसे ही।
किताबों के आख़िर के ख़ाली सफ़े पर लिखा होता है,किसी का नाम,किसी का नंबर,किसी की कोई पहचान या कोई पता
जैसे इंसान खुद को भूलने पर याद करता है किसी और को
किताबों में होती है कहानियां इंसानों की
और इंसानों में होती है ज़िन्दगी की किताबें
कई कहानियां होती है एक इंसान में
और कई इंसान रहते है एक कहानी में
कुछ इस तरह लिखा-पढ़ जाना चाहिए दोनों को
कि दोनों एक दूसरे की कहानी कह सके ।