सोमवार, 20 जुलाई 2020

क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की 91वीं पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन : प्रशांत सी बाजपेयी

प्रजा दत्त डबराल @ नई दिल्ली


क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की 91वीं पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन।।


भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त कि भेंट भगत सिंह से 1924 कानपुर में हुई थी। इसके बाद उन्होंने ' हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।


प्रशांत सी बाजपेयी (अध्यक्ष, स्वतंत्रता आन्दोलन यादगार समिति) ने हमारे संवाददाता को बताया की 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य के तानाशाही का विरोध किया।बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को  प्रचारित करने के लिए किया गया था।


बम फेकने के बाद भगत सिंह ने कहा था "अगर बहरों को सुनाना हो तो आवाज ज़ोरदार करनी होगी"। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और डिस्प्यूट बिल लाया गया था। जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।



इस घटना के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून को इन दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। बाद में लाहौर सेंट्रल जेल में डाल दिया गया था। यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजी सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी सरकार के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मार कर चुकाने का बदला निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया।


इस कार्वाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सज़ा दी गई। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी सेल्युलर जेल भेज दिया गया। सेल्युलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कागार, पटना में लाया गया। 1938 में रिहा कर दिए गए। सन् 1942 के आगस्त क्रांति आंदोलन में महात्मा गांधी के 'करो या मरो' के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गये।


बटुकेश्वर दत्त को फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार साल बाद 1945 को रिहा किए गए। आज़ादी के बाद अंजली से विवाह करने के बाद पटना में रहने लगे। बटुकेश्वर दत्त एक गंभीर बीमारी के कारण  20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुविज्ञाश संस्थान में.हुई।मृत्यु के बाद इनका देह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारियों साथियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनीवाला में किया गया था।


मातृभूमि के लिए इस तरह का जज्बा रखने वाले नौजवान का इतिहास भारत वर्ष के अलावा किसी अन्य देश के इतिहास में उप्लब्ध नहीं है। बटुकेश्वर दत्त महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित्त एंम देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्हित रहने वाले क्रांतिकारी थे।