कवि एवं अभिनेता के के शुक्ला (करुणेश) की कलम से...
" अपने इल्म ओ सुख़न की दौलत पे हम इतराते क्यों हैं "
अपने इल्म ओ सुख़न की दौलत पे हम इतराते क्यों हैं
बातों से छुपी नफ़रत को हम जतलाते क्यों हैं
जब ख़ुद नहीं देखा किये
हम आईना कभी
फिर औरों को हम आईना दिखलाते क्यों हैं
जब नहीं रहा ग़ुरूर हमे फ़नकारी का कभी
फिर क़ीमत अपने शेरों की हम बतलाते क्यों हैं
गर वाक़ई हम हैं अदब ओ आदाब के शायर
तो मज़ाक हर किसी का
हम उड़ाते क्यों हैं
गर सच में है ये मुल्क
मेरे बाप की जागीर
फिर बेशर्मी से हम इसे जलाते क्यों हैं
खूँ शामिल जब सभी का है इस मिट्टी में करुणेश
तो बारहा इस बात को हम जतलाते क्यों हैं