संवाददाता : नई दिल्ली
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की हत्या के संदर्भ में आत्महत्या के बढ़ते हुए सवाल खड़े हुए हैं? भारत में आत्महत्या का आंकड़ा बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार हर घंटे 15 लोग आत्महत्या करते हैं। इनमें से 69 फीसदी विवाहित होते हैं। पांच में से एक व्यक्ति घरेलू वजह से आत्महत्या करता है। भारत सरकार के अांकड़ों के अनुसार पुरूषों की आत्महत्या के पीछे प्रमुख कारण सामाजिक व आर्थिक होते हैं। महिलाएं अधिकतर भावनात्मक आवेश में आत्महत्या जैसा कदम उठाती है।
41.1 फीसदी आत्महत्या करने वाले खुद के रोजगार में थे। 7.5 फीसदी बेरोजगार थे। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के अनुसार आत्महत्याओं का प्रतिशत पुरूषों में साढ़े सत्तर प्रतिशत रहा। दक्षिण भारत आत्महत्याओं के मामले में आगे रहा। महाराष्ट्र व दक्षिण राज्यों में 65.8 फीसदी आत्महत्याओं के केस दर्ज किये गए। सम्पत्ति कलह के चलते 4.8 फीसदी लोगों ने आत्महत्या की। 23.7 फीसदी ने पारिवारिक कारणों से अपना जीवन समाप्त किया। 21 फीसदी ने बीमारी के कारण मौत को गले लगाया। प्रियजन की मृत्यु के आघात के कारण 28.7 फीसदी ने आत्महत्या की।
पुरूष व महिलाओं के बीच आत्महत्या का अनुपात 65 व 35 था। 14 वर्ष की आयु के किशोर व किशोरियों में आत्महत्या का प्रतिशत साढ़े बावन रहा। आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्याओं के पीछे प्रमुख कारण किसी न किसी कारण से मानसिक अवसाद रहा। युवा व किशोरवय के लोग प्रायः कक्षा में फेल होने, प्रेम में असफल होने, अपनी जिद पूरी न होने या घर से झगड़ा होने के कारण आत्महत्या करते हैं। प्रायः महिलाएं अपने पति से मतभेद या ससुरालियों द्वारा प्रताड़ित होने के कारण आत्महत्या करती हैं।
आत्महत्याओं के पीछे एक प्रमुख कारण यह रहा कि पीड़ित व्यक्ति किसी न किसी कारण से जीवन से निराश हो गया था। जब निराशा चरम अवस्था में पहुंच जाती है तो वह मानसिक तनाव व द्वंद्व के चलते अपनी जीवनलीला समाप्त करने का निर्णय लेता है। कई लोगों ने भावावेश में आत्महत्या का कदम उठाया। यदि इस अवस्था में कोई शुभचिंतक पीड़ित को सलाह दे तो आत्महत्या करने वाला शायद अपनी हालत से उबर जाये और अपना इरादा बदल दे। चिकित्सालयों में जहर खाने या जलकर मरने या नदी व कुयें में डूबने के केस आते हैं। इनमें से कुछ बच जाते हैं तो कुछ उपचार के दौरान ही दम तोड़ जाते हैं।
कई आत्महत्याओं के केस पुलिस में दर्ज नहीं होते क्योंकि केस की सूचना संबंधित थानों तक नहीं पहुंचती। अस्पताल के डॉक्टर व कर्मचारी परिजनों के दवाब में केस की सूचना पुलिस को नहीं देते क्योंकि मृतक के वेतन, पेंशन, बीमा व उत्तराधिकार में धन व सम्पत्ति व अन्य देयकों के भुगतान में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। फांसी लगाकर अथवा जहर खाकर आत्महत्या के केस तो छुप नहीं पाते। आत्महत्या के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, वे वास्तविक आंकड़ों से कम ही हैं। आत्महत्या के पीछे मौजूद कारणों का पता नहीं चल पाता। कई बार परिजन भी नहीं जान पाते। बेरोजगारी भी आत्महत्या का प्रमुख कारण है। सरकारी कर्मचारियों में आत्महत्या का प्रतिशत केवल 1.4 था। शिक्षित वर्ग चिंतनशील व भावुक होता है। ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों से आत्महत्या के अधिक केस आते हैं।
केवल 19.8 फीसदी अशिक्षित व्यक्तियों ने आत्महत्याएं की। कोरोना काल में निराशा व अकेलेपन के कारण किशोरों को अवसाद हो सकता है। इसलिए उन्हें अकेला न छोड़ें। किशोर व किशोरियों में आत्महत्या के पीछे प्रमुख कारण यह है कि वे अपने मां बाप या अभिभावकों से मानसिक संतुलन स्थापित नहीं कर पाते। कई अभिभावक अपने बच्चों की उपेक्षा व अवहेलना करते हैं। कई बच्चे प्रताड़ित होते हैं। कई बार अभिभावक आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण अपने बच्चे की जिद पूरी नहीं कर पाते। साथियों की देखादेखी वे भी अपनी इच्छा जिद से पूरी करना चाहते हैं। ऐसी दशा में अभिभावकों का दायित्व है कि वे बच्चे को समझायें। प्यार से समझाने पर बच्चा अपनी जिद छोड़ सकता है।
अधिकतर आत्महत्या करने वालों को अपने कुत्सित प्रयास पर पछतावा होता है। वे भावावेश में आत्महत्या जैसा पग उठाते हैं। आत्महत्या के अधिकतर आवेश अस्थाई होते हैं। यदि आत्महत्या करने वाले को सही वक्त पर मनोवैज्ञानिक सलाह मिल जाय तो वह आत्महत्या का विचार त्याग सकता है। आत्महत्या के आंकड़ों में कमी लाना संभव है। अवसाद के पीछे कोई न कोई कारण छिपा होता है।
इन कारणों का इलाज संभव है। अवसाद के शिकार व्यक्ति को अकेलेपन से बचना चाहिए। स्वयं को रचनात्मक कार्यो में व्यस्त रखना चाहिए। निराशा व कुंठा से दूर रहना चाहिए। व्यर्थ के विवादों से भी दूर रहना चाहिए। वे कोई रचनात्मक हॉबी पालें। उन्हें समझना होगा कि जीवन अमूल्य है, हमें इसकी रक्षा करनी है। समाज व परिवार को पीड़ित व्यक्ति के प्रति सहानुभूति रखनी होगी। परिजनों का इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान होता है।