शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

"देश के सबसे युवा क्रांतिकारी शहीद खुदीराम बोस की 112 वीं  पुण्यतिथि(11 अगस्त) पर शत् शत् नमन"...

संवाददाता : नई दिल्ली


      अमर शहीद खुदीराम बोस का जन्म तीन दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल स्थित मिदनापुर जिले के हबीबपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिय देवी था। खुदीराम अपने परिवार में  सबसे छोटे थे, इनसे बड़ी चार बहने थीं। 


प्रशांत सी बाजपेयी (अध्यक्ष, स्वतंत्रता आन्दोलन यादगार समिति) ने हमारे संवाददाता को बताया की उनकी परवरिश उनकी बड़ी बहन ने ही की थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मिदनापुर कॉलेजिएट स्कूल में हुई। लेकिन जब वो 6 साल के थे तभी उनकी माता की मृत्य हो गयी और एक साल बाद ही उनके पिता जी का भी स्वर्गवास हो गया। इसलिए उनकी बड़ी बहन अपरूपा रॉय उन्हें अपने साथ अपने गाँव हातगाछा ले गयीं। खुदीराम बोस के जीजा अमृतलाल रॉय ने उनका दाखिला तामलुक के हैमिल्टन हाईस्कूल में करा दिया। 



खुदीराम बोस ने स्कूल के दिनों से ही राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर शामिल होने लगे। जैसे जैसे उन्हें अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों और जुल्मों के बारे में पता चला उनके मन में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नफरत बढ़ती गयी। और छोटी उम्र के बावजूद पढाई छोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।


सन 1905 में खुदीराम बोस ने बंग भंग के विरोध में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चल रहे आंदोलन में अपने आप को पूरी तरह से झोंक दिया। वो उस समय आजादी की लडाई में सबसे शक्तिशाली युवा क्रांतिकारी के रुप में उभर कर आए और कई युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बने।  


इसके बाद वो अनुशीलन समिति में शामिल हुए और वहीं प्रसिद्ध क्रान्तिकारी वीरेन्द्र कुमार घोष के संपर्क में आये। सन 1907 में उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ पर्चे बांटे, पुलिस स्टेशनों के पास बम ब्लास्ट किए, डाक घरों को लूटा, अफसरों पर हमले किए और कई अन्य क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया। 



इस दौरान पकड़े भी गए और उन पर राजद्रोह का मुक़दमा भी चला लेकिन नाबालिग होने की वजह से छोड़ दिए गए। हुकूमत का ध्यान बांटने के लिए खुदीराम बोस थोड़े दिन दिनों के लिए शांत पड़ गए, लेकिन ये आंधी के पहले की शांति थी।  
 
उन दिनों अलीपुर, कलकत्ता में चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट के पद पर किंग्सफोर्ड था। वो एक सख़्त, अत्याचारी और क्रूर अधिकारी था। उसे राजनीतिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ सख्त रुख और नाजायज़,फैसलों के लिए जाना जाता था। उसके अत्याचारों से त्रस्त आकर युगांतर दल के नेता वीरेन्द्र कुमार घोष ने उसे मारने की योजना बनाई। 


इस काम के लिए लिए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को चुना गया। तब तक किंग्सफोर्ड का तबादला बिहार के मुजफ्फरपुर ज़िले में हो गया था। तो इस काम को अंजाम देने के लिए दोनों लोग मुजफ्फरपुर पहुंच गए और किंग्सफोर्ड की गतिविधियों पर नज़र रखने लगे। वहां एक युरोपियन क्लब था, जिसमें अंग्रेज अधिकारी और उनके परिजन अक्सर अपनी शामें बिताते थे। 


एक दिन खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की बघ्घी को युरोपियन क्बल के गेट से बाहर आते देख बम से उड़ा दिया। उस बघ्घी में किंग्सफोर्ड नहीं था इसलिए बच गया। लेकिन हादसे में उसकी पत्नी और बेटी की मौत हो गई। 


इस घटना के बाद दोनों क्रांतिकारी मौके से फरार तो हो गए लेकिन प्रफुल्ल चाकी ने अंग्रेजों के हाथों मरने की बजाय खुद को गोली मारकर शहीद होना पसंद किया। 


खुदीराम बोस पूसा रोड रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिए गए। मुक़दमे का नाटक हुआ और फिर 11 अगस्त 1908 को 18 साल आठ महीने और आठ दिन के खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई।


महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस स्वाधीनता के लिए हँसते हँसते फांसी चढ़ गए और एक इतिहास रच दिया। वो राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों के लिए अनुकरणीय हुए। उनकी शहादत ने देश में आजादी की एक नयी ललक पैदा की, इससे देश के स्वाधीनता आंदोलन को नया बल मिला।