संवाददाता : नई दिल्ली
34 साल के अंतराल के बाद सरकार द्वारा घोषित नई शिक्षा नीति का नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने स्वागत किया है। यह शिक्षा नीति शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया के अन्य विकसित देशों से सामंजस्य स्थापित करने के साथ भारतीय सभ्यता और ज्ञान की धरोहर को नई पीढ़ी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य करेगी। इस नीति के प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रीय शिक्षा आयोग की प्रधानमंत्री अध्यक्षता करेंगे। यह आयोग सभी स्तर पर शिक्षा के मानकों में सुधार के लिए कार्य करेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा जगत में 21वीं शताब्दी में ज्ञान क्रांति की सूचक बनेगी।
संगठन के अध्यक्ष डाॅ. ए के भागी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय बनाए जाने पर खुशी जताते हुए बताया कि नई शिक्षा नीति में प्री नर्सरी और सीनियर सेकेंडरी स्तर तक 5+3 +3+4 का प्रावधान है जो विद्यार्थी की मजबूत बुनियाद रखने में सहायक होगा। स्कूली स्तर पर शत-प्रतिशत GER और असमय स्कूल छोड़ने वाले दो करोड़ बच्चों को वापस शिक्षा से जोड़ने की पहल के उपाय इस शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण प्रस्ताव हैं ।शिक्षा का सार्वजनिककरण और समावेशीकरण भी इसका एक बहुत महत्वपूर्ण आयाम है।
उन्होंने यह भी कहा कि विश्व भर में शिक्षा को लेकर हुए शोधों से ज्ञात हुआ है कि मातृभाषा में शिक्षा ही सबसे बेहतर माध्यम है। इस शिक्षा नीति में पांचवी कक्षा तक मातृभाषा में शिक्षा का प्रावधान किया गया है। इस नीति में कला, विज्ञान , वाणिज्य , शारीरिक शिक्षा और व्यवसायिक रूप में शिक्षा के विभाजन को समाप्त कर उसे समग्रता में प्रस्तुत करने की पहल को एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है। B.Ed की हजारों व्यवसायिक दुकानों पर रोक लगाने के लिए 4 वर्षीय B.Ed इंटीग्रेटेड उपाधि भी एक अच्छी पहल मानी जा सकती है।
नई शिक्षा नीति में बहुआयामी निकासी और विद्यार्थी के शिक्षा में कभी भी पुनः प्रवेश की व्यवस्था के प्रावधान और भविष्य के लिए क्रेडिट जमा करने वाली व्यवस्था एक अन्य महत्वपूर्ण पहल है। नई शिक्षा नीति को लेकर विपक्ष के निजी करण , राज्य के शिक्षा की फंडिंग से हाथ खींचने , आरक्षण की समाप्ति , प्रमोशन व स्थाई नियुक्ति न होने के तमाम आरोप बेतुके और निराधार है।
संगठन के महासचिव डॉ. वी एस नेगी ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारत के उच्चतर शिक्षा आयोग के निर्माण की परिकल्पना की गई है जो अपने विभिन्न अंगों के माध्यम से कार्य करेगा। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद, नियामक अनुदान के लिए उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद और राष्ट्रीय प्रतिज्ञा परिषद के प्रावधानों से उच्चतर शिक्षा के प्रसार की नई परिभाषाएं व संभावनाएं जन्म लेंगी।
नई शिक्षा नीति में राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद का प्रावधान है जिसमें देखना होगा कि नौकरशाही और लालफीताशाही हावी ना हो जाए। नई शिक्षा नीति में आधुनिक और प्राचीन भारतीय ज्ञान के समागम पर जोर है। एन डी टी एफ के उपाध्यक्ष डॉ. बिजेंद्र कुमार ने मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा संस्कृत , पालि , प्राकृत, अपभ्रंश में शिक्षा और शोध को प्रोत्साहन तथा कौशल आधारित शिक्षा को प्रोत्साहन इस नीति का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष बताया।
देश की शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च करने की मांग 1964 में की गई थी जिसे इतने लंबे अंतराल के बाद एन डी ए सरकार ने साकार करने का संकल्प लिया है ।नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से निम्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर तत्काल ध्यान आकर्षित करके उनके समाधान का अनुरोध करता है:
1. वास्तविक स्वीकृत पदों पर लंबे समय से अध्यापन करने वाले तदर्थ अध्यापकों को भारत सरकार के आरक्षण नियमों का पालन करते हुए उनका स्थायीकरण किया जाए।
2. पी एच डी के बाद किए गए शोध और तदर्थ सेवा के समय को जोड़कर प्रमोशन प्रक्रिया शीघ्र आरंभ की जाए। कॉलेजों में प्रोफेसर के स्तर पर प्रमोशन प्रक्रिया आरंभ हो। बिना पीएचडी के भी एसोसिएट प्रोफेसर स्तर तक प्रमोशन हो।
3 .सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों के लिए पेंशन की व्यवस्था हो ।पेंशन के लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा हो।
4. छठे और सातवें वेतन आयोग की विसंगतियां शीघ्र दूर की जाएं। वेतन विसंगति समिति की रिपोर्ट जारी की जाए।
5 .पुस्तकालय अध्यक्ष और वोकेशनल शिक्षक स्टाफ की अन्य शिक्षकों के साथ समानता तय हो। शारीरिक शिक्षकों के साथ अन्याय न हो।
इन सब मुद्दों के लिए नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी को समय -समय पर विस्तृत ज्ञापन भी दिया है। अभी भी लगातार इन मुद्दों पर कार्य किया जा रहा है।