रविवार, 6 सितंबर 2020

भारत में प्राचीन काल से ही शिक्षा को सात्विक और पावन वृत्ति माना जाता रहा है: उपराष्ट्रपति

संवाददाता : नई दिल्ली


       उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शनिवार कहा कि सर्वोत्तम बनना ही नियम होना चाहिए, दोयम दर्जे से संतुष्ट होना तो कोई विकल्प ही नहीं है। शिक्षक दिवस पर फेसबुक पोस्ट में अपने विचार व्यक्त करते हुए, नायडू ने याद दिलाया कि इतिहास के एक दौर में भारत विश्वगुरु रहा है जिसने विश्व के बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है।


उन्होंने कहा कि नालंदा, तक्षशिला, पुष्पगिरी जैसे शिक्षण संस्थाएं हमारी उत्कृष्टता के प्रतीक रहीं हैं। भारतीय समाज में विद्या और अध्ययन को आदरणीय स्थान प्राप्त था और अध्यापन को सात्विक पवित्र वृत्ति के रूप में सम्मान दिया जाता था।


अपने फेसबुक पोस्ट में श्री नायडू ने अपने शिक्षकों को कृतज्ञतापूर्वक याद किया जिन्होंने उनके व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ी है। आचार्य देवो भव की भारतीय अवधारणा को याद करते हुए उपराष्ट्रपति ने लिखा है कि गुरुजनों में देवत्व दिखता है क्योंकि वे एक समग्र सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं, नए विचारों नए प्रयोगों को प्रोत्साहित करते हैं, और अच्छे विचारों का संरक्षण संवर्धन करते हैं, संशयों का समाधान कर, उत्कृष्टता को गढ़ते हैं।


उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 में शिक्षक वृंद को शिक्षा प्रणाली का हृदय माना गया है। समाज को राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों के महान योगदान का सम्मान करना चाहिए।


21वीं सदी को रचनात्मक विध्वंस, पुनर्सृजन और नव सर्जन का युग बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसी हम वस्तुतः एक वैश्विक ग्राम में रह रहे हैं। उन्होंने 21वीं सदी के शिक्षकों से अपेक्षा की कि वे भविष्य के  ऐसे नागरिकों का निर्माण करें जिनकी दृष्टि तो वैश्विक विस्तृत हो परन्तु मूल संस्कार भारतीय हों।


उन्होंने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे तकनीक की सहायता से शिक्षा को रुचिकर, सुगम और मित्रवत बनाएं। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान शिक्षकों ने तत्परता से टेक्नोलॉजी को अपनाया है और ऑनलाइन माध्यम से शिक्षण को जारी रखा है। उन्होंने नई टेक्नोलॉजी सीखने और अपनाने के लिए शिक्षकों का अभिनन्दन करते हुए कहा कि उन्होंने नई टेक्नोलॉजी को सीखने का साहस और विश्वास दिखाया है। उन्होंने लिखा है कि जीवन भर निरन्तर सीखते रहना, समय के साथ अपने ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करना, भारतीय जीवन आदर्श रहा है।



उन्होंने कहा कि गुरुजनों से औपचारिक शिक्षा के अलावा भी हम घर पर माता पिता, घर के बुजुर्गों, मित्रों सहयोगियों से सीखते रहते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने दत्तात्रेय की कथा का उदाहरण भी दिया जिन्होंने प्रकृति के विभिन्न रूपों और अंगों जैसे सूर्य, पवन, समुद्र, चन्द्रमा यहां तक कि मक्खी और मछली जैसे जीवों से भी सीखा। उन्होंने लिखा कि जीवन भर निरन्तर सभी से सीखना और सर्वोत्तम को अपनाना, यही भारतीय जीवन शैली का आदर्श रहा है।


उन्होंने कहा कि सदैव जिज्ञासा रहनी चाहिए, अपने ज्ञान के विकास विस्तार की प्रेरणा सदैव बनी रहनी चाहिए, नई अच्छे विचारों को स्वीकार करने का भाव रहना चाहिए। उन्होंने कहा जो शिक्षक इस प्रेरणा से प्रयास कर रहे हैं, उनके प्रयास अभिनंदनीय हैं और उन्हें प्रत्साहित किया जाना चाहिए तभी श्रेष्ठ भारत और सक्षम भारत का निर्माण हो सकेगा।


भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्म जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए श्री नायडू ने लिखा वे एक सुविख्यात राजनेता, विद्वान विचारक और लेखक थे जिन्हें  दर्शन, तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान और सामाजिक विज्ञान की विधाओं का गम्भीर ज्ञान था।  पूर्ववर्ती और समकालीन विचारकों सुकरात से सार्त्र, रूसो से रसेल, मार्क्स और बर्क पर उनकी प्रमाणिक दृष्टि थी।


उन्होंने कहा कि शिक्षक दिवस पर हमें डॉ राधाकृष्णन जैसे प्रेरक गुरुजनों के राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान का सम्मान करना चाहिए।