कवयित्री श्वेता सिंह की कलम से...
" ख़्वाब ही बन जाऊँ तेरा "
कुछ निगाहों के लिए भी लिखा है,
निगाह मिले तो दिखाई कोई और ना दे,
तुझ से मिलूँ, रह जाऊँ तुझ में खो कर,
मुझे मेरे होने की ख़बर कोई और ना दे...
अगर बन जाऊँ तेरे दिल की धड़कन,
दिल में तेरे दस्तक कोई और ना दे,
एक ख़्वाब ही अगर बन जाऊँ तेरा,
तुझ से जुदा होने की वजह कोई और ना दे...
रह जाएँ यादों में बाकी निशां तेरे,
ये पहचान मेरी मुझे कोई और ना दे,
नहीं इजाज़त ये किसी को, काश! ये हो,
तेरे सिवा इन लबों को हँसी कोई और ना दे...
साथ रखूँ तुझे तन्हाई और हर महफ़िल में,
मुझ से पहले ये पैग़ाम तुझे कोई और ना दे,
तू ही हो शामिल मेरे दिन, मेरी रातों में,
वक़्त की इत्तिला मुझे कोई और ना दे...
कहाँ अभी सुकूँ, नहीं चैन मेरे जहां में,
देखना है ग़म नया, तू कोई और ना दे।।