कवि नीरज त्यागी की कलम से...
" यादों की बारिश "
यादों की बारिश में , मैं खुद को भिगो आया हूँ।
कोशिश बहुत की,पर आँशुओ से ना बच पाया हूँ।।
बचपन में वो ट्रैन का स्टेशन पर अचानक आ जाना।
किसी का हाथ , मुझे पकड़कर , वहाँ से दूर हटाना।
वो माँ की गिरफ्त में मेरे कांधे,सर पर माँ का हाथ,
माँ के प्यार भरे एहसास से खुद को भिगो आया हूँ।
वो स्कूल ना जाने का बहाना बनाकर घर मे रह जाना।
फिर माँ की डांट खाकर,पाँव पटककर स्कूल जाना,
माँ की प्यार भरी फटकार मे खुद को भिगो आया हूँ।।
वो परीक्षा के समय मे देर रात को चाय पीने की तलब,
कितनी भी नींद में माँ हो,अगले पल चाय मिल जाना।
माँ के उस ना थकने वाले प्यार में खुद को भिगो आया हूँ।।
आज कहीं भी देख लूं ,पहले सा कुछ भी नही दिखता।
मैं उस भूले-बिसरे एहसास मे खुद को भिगो आया हूँ।।
यादों की बारिश में , मैं खुद को भिगो आया हूँ।
कोशिश बहुत की,पर आँशुओ से ना बच पाया हूँ।।