सोमवार, 20 जनवरी 2020

आदिवासी दर्शन को समझने के लिए सबसे पहले समझना होगा कि आदिवासी कौन है...

संवाददाता : रांची झारखंड


      आड्रे हाउस रांची में चल रहे तीन दिवसीय जनजातीय दर्शन पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अन्तिम दिन आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा हुई। इस सत्र में आदिवासियों के अपने समाज में आत्मा, मृत्यु और पुनर्जन्म के बारे में क्या धारणाएँ है। मृत्यु के बाद क्या होता है किस प्रकार अन्तिम क्रिया किया जाता है इन सब पर विस्तार से विद्वानों ने अपने विचार रखे।



आदिवासियों का त्योहार ऋतु और फसल से संबंधित होते है।


अर्जुन राथवा ने बताया कि आदिवासी प्रकृति के रिवाजों और कानून को मानते है। वे किसी धर्म में बंध कर नहीं रह सकते। उन्होंने बताया कि आदिवासियों का त्योहार ऋतु और फसल से संबंधित होते है।


आत्मा का घर में प्रवेश कराया जाता है एवं उन्हें पूर्वजों के आत्मा के साथ जोड़ा जाता है


डॉ हरि उरांव ने आत्मा और पुनर्जन्म पर आधारित परिचर्चा में भाग लेते हुए मृत्यु के बाद आत्मा अपने प्रियजनों को समीप देखना चाहता है। मृत्यु के बाद दफनाने और जलाने की विधि होती है। श्राद्ध के पूर्व तक मृतक के लिए खाना पहुंचाया जाता है। आत्मा का घर मे प्रवेश कराया जाता है एवं उन्हें पूर्वजों के आत्मा के साथ जोड़ा जाता है।


मृत्यु के बाद आत्मा अइमोग में चली जाती है


अरुणाचल प्रदेश की डॉ जमुना बिनि ने निशि जाति के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद आत्मा अइमोग में चली जाती है। मृत्यु के बाद बूढ़ी महिलाओं द्वरा सिनिमर किया जाता है। इस दौरान मृत व्यक्ति द्वारा समाज के लिए किए गए कार्यों के बारे में गायन के रूप में व्यख्या की जाती है।


मेघालय में जल, जंगल, जमीन के साथ-साथ पहाड़ और नदियों को भी पूजा जाता है।


मेघालय के डॉ सुनील कुमार ने बताया कि मेघालय में जल, जंगल, जमीन के साथ-साथ पहाड़ और नदियों को भी पूजा जाता है। मेघालय के आदिवासी समूह का मानना है कि ईश्वर द्वारा 7 परिवार को पृथ्वी पर खेती करने को भेजा गया था और पहाड़ से आसमान तक सीढ़ी लगी हुई थी जिससे वे आना जाना करते थे लेकिन ईश्वर का शर्त था कि पृथ्वी पर जाकर झूठ नही बोलना है हमेशा सत्य की राह पर चलना है। इसका लोगों ने पालन नही किया जिससे वह सीढ़ी गायब हो गयी। उन्होंने बताया कि मेघालय में अतिथियों का स्वागत पान सुपाड़ी और चूना से किया जाता है।


तीसरे एवं अंतिम सत्र में श्रीमती सैलजा बाला ने अच्छी और बुरी आत्माओं के बारे में बताया उन्होंने कहा कि मरने के उपरांत आत्मा बुरे और अच्छे रुप में रहते है। उन्होंने कविता के माध्यम से जनजातीय दर्शन पर कहा कि इनकी जीवन पद्धति अलग है ये सहज और सरल स्वभाव के लोग हैं।


कृष्णा शाहदेव ने कहा कि जनजातीय समाज के लोग प्रकृति के सर्वाच्च शक्ति की पूजा करते हैं ये समानता और आपसी समन्वय पर विश्वास करते हैं। जनजातीय दर्शन पर इन्होंने कहा कि यह मूलतः प्रकृति पर निर्भर हैं। जनजातीय जीवन ही जनजातीय दर्शन है यह सदियों से अपने अस्तित्व कि रक्षा करते आ रहे हैँ।