मंगलवार, 24 मार्च 2020

" दूरियों " कवि नारायण डबराल की कलम से...

" दूरियों " कवि नारायण डबराल की कलम से...


" दूरियों "


जो  ए  हमारी  दूरी  है
बस ए एक मजबूरी है ।
फ़ासले ए जो बढ़ा दिये
न सोचना हमें ये भा गये ।
ज़ुल्फ़ों की साया माँगी पर
पैरों की  बेड़ियाँ  पा गये ।
जो  ए  हमारी  दूरी  है
बस ए एक मजबूरी है ।


संग-संग चलने का मन तो  है
पर चार दिवारों में फँस गये।
न सोचना मन का ग़रूर है 
ये मन मेरा  बस मजबूर  है।
साँसें व्याकुल तुझे मिलने को
पर चक्रव्यूह से मुक्ति ज़रूरी है
जो  ए  हमारी  दूरी  है
बस ए एक मजबूरी है ।


वसन्त ऋतु अब आने को है
पतझड़ का मौसम अलविदा।
अंतराल मिलाप मे सुगंध सा
बस थोड़ा इंतज़ार ज़रूरी है ।
ये सुनसान उपवन बुला रहें
पर कलियों खिलें ये ज़रूरी है ।
जो  ए  हमारी  दूरी  है
बस ए एक मजबूरी है ।


हम तुम मिलेंगे गले लगेंगे 
तुम राह देखना  प्रतीक्षा में।
कुछ ही दिनों का सवाल है 
इस अंतराल में न मलाल है।
समय ज़रा अब  क्रूर है 
पर इसपर भी चेहरा नूरी है ।
जो  ए  हमारी  दूरी  है
बस ए एक मजबूरी है ।


वक़्त ये  भी अतीत  होगा
मिलन हमारा अजीत होगा।
कंगन होंगे हाथों के, बेड़ियाँ 
संयम  मन का  ज़रूरी है ।
ईश आशीष पर विश्वास है 
उसकी प्रशंसा भूरी भूरी है ।
जो  ए  हमारी  दूरी  है
बस ए एक मजबूरी है ।