कवयित्री श्वेता सिंह की कलम से...
" बस दरिया की कमी है "
हवा कभी करती मेरी तन्हाई का एहसास
आज भी जिस में मेरे अश्कों की नमी है।
मौज़ूद हैं किनारे, बस दरिया की कमी है...
फ़िज़ा भी एक पल को लगा लेती ये आस
सर्द समां में धड़कन सी जमी है ।
उस की साँसों पर मेरी दुनिया सी थमी है...
सब हैं वो नहीं, मौसम है जैसे उदास
किस डर से ये हवा सहमी है ।
उस को मिलना था मगर कोई ग़लतफ़हमी है...
मुलाक़ात लम्हों में सिमटती, तो होती कुछ ख़ास
धुंध एक अरसे से यादों पे जमी है ।
किसी पर ये सितम, किसी पर बेरहमी है...
ज़माने को पसंद नहीं, रहे उस का ख़्याल भी मेरे पास
न ये आसमां मेरा, न मेरे पास ज़मीं है।
बस याद इतना के सिर्फ तेरी कमी है...!!