शनिवार, 27 अप्रैल 2019

गर्मियां बढ़ते ही बढ़ने लगी पारंपरिक सुराही व घड़ों की मांग...

संवाददाता : देहरादून उत्तराखंड 



                   गर्मी आते ही मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ने लगी है। आधुनिक दौर में जहां बाजार में प्लास्टिक के बर्तनों ने जगह ले ली है। तो वहीं, दूसरी ओर लोगों को पारंपरिक मिट्टी से बने घड़े सुराही आदि बर्तन अब भी खूब रास आते हैं। जिसके चलते आजकल लोग इन पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों की जमकर खरीददारी कर रहे हैं। मिट्टी के बने बर्तनों को स्वास्थ्य के लिहाज से भी काफी अच्छा माना जाता है। जो लोगों को कई बीमारियों से भी दूर रखते हैं।  इन दिनों मिट्टी के बने बर्तनों की मांग बढ़ने से व्यवसायियों के चेहरे खिले हुए हैं। तापमान बढ़ने के साथ ही देशी फ्रिज यानि मिट्टी से बने घड़े और सुराही की मार्केट में मांग तेजी से बढ़ गई है। आधुनिक दौर में भी इन मिट्टी के बने बर्तनों का खास महत्व है।


गरीब तबके के लोगों के लिए यह किसी फ्रिज से कम नहीं है। मटके का पानी जहां एक ओर कई फायदे देता है। वहीं, स्वास्थ्य के लिहाज से भी ये काफी लाभकारी माना जाता है। यही वजह है कि आजकल प्रदेश की राजधानी देहरादून में मिट्टी के बने बर्तनों की दुकानों से लोग जमकर खरीददारी कर रहे हैं। आधुनिक दौर में जहां बाजार में प्लास्टिक के बर्तनों ने जगह ले ली है। जबकि, दूसरी ओर मौसम में गर्मी बढ़ने के साथ ही अतीत से चले आ रहे मिट्टी के बर्तन भी लोगों को खूब पसंद आ रहे है। जहां प्लास्टिक से बना सामान स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं, मिट्टी के बने बर्तन स्वास्थ्य और पर्यावरण के हिसाब से काफी फायदेमंद माने जाते हैं। जिनको उपयोग में लाकर लोग पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा दे सकते हैं। कुछ ग्राहकों का कहना है कि समय आ चुका है कि हमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ना होगा। वहीं, प्लास्टिक की जगह प्राकृतिक ढंग से तैयार किए गए मिट्टी और अन्य उत्पादों से बने सामान को रोजमर्रा के काम में उपयोग ने लाने से भी पर्यायवरण में बढ़ रहे दबाव को कम किया जा सकता है।


पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे हिमालय आईकन संस्था के अध्यक्ष रितेश फरस्वाण का इस मामले में कहना है कि मिट्टी से बने बर्तन न सिर्फ हमें स्वस्थ रखते हैं बल्कि पर्यायवरण के लिहाज से भी बेहतर हैं। बस लोगों को समय के हिसाब से अपनी सोच बदलने की जरूरत है। प्लास्टिक के उत्पादों से बचने के लिए लोग अपने घरों में मिट्टी से बने साज-सज्जा के सामान के अलावा अब खाने-पीने के बर्तनों में खासी रुचि दिखा रहे हैं। देहरादून के ईदगाह स्थित कुम्हारों की मानें तो अब पहले के मुकाबले उनके पास मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ी है। जैसे कुकर, हंडी, तवा, कड़ाही, बोतल, पानी की टंकी जैसे टिकाऊ बर्तन अभी गुजरात के अलावा यूपी के खुर्जा और चंडीगढ़ से आ रहे हैं। पिछले सात पीढ़ियों से मिट्टी बचने का कार्य कर रहे कुम्हार गंगा शरण का कहना है कि घरों में साज सजावट के अलावा खाना बनाना, पानी पीने के बर्तनों की मांग लोगों में बढ़ रही हैं।


मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने वाले आइटम को लोग ढूंढते हुए उनके पास पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं शादी समारोह तंदूर की भी मांग ज्यादा है। उन्होंने बताया कि आधुनिक दौर में मिट्टी के बर्तनों के प्रति लोगों का रुझान अब धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। जो कुम्हारों के अस्तित्व को बचाए रखने में भी सहायक होगा। वहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी कुम्हार का काम कर रहे लोगों को सड़क किनारे अपना रोजगार करने में खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जिन्हें जिला प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर परेशान किया जाता है। साथ ही कुम्हारों का कहना है कि पुलिस प्रशासन द्वारा उन्हें जगह खाली करने की हिदायत भी दी गई है।