रविवार, 1 सितंबर 2019

आईएएस एसोसिएशन का साहित्य चर्चा कार्यक्रम "कटिहार से कैनेडी"...

संवाददाता : जयपुर राजस्थान 


      आईएएस एसोसिएशन की साहित्यिक सचिव तथा विज्ञान एवं पर््रौद्योगिकी विभाग की सचिव मुग्धा सिन्हा ने शनिवार को बताया कि एसोसिएशन की ओर से साहित्यिक संवाद कार्यक्रम के तहत शनिवार को झालाना संस्थानिक क्षेत्र स्थित भामाशाह टेक्नोहब में प्रातः 11 बजे डॉ. संजय कुमार द्वारा रचित ''कटिहार से कैनेडी, दि रोड लेस ट्रेवल्ड'' पर लेखक के साथ आंचल सिंह ने संवाद किया।

 

इस अवसर पर लेखक डॉ. संजय कुमार ने कहा कि जीवन में संघर्ष या हार स्थायी नहीं होती और ऎसी परिस्थितियों में व्यक्ति को टूटना या हारना नहीं चाहिये। पढ़ाई और एक्सपोजर के द्वारा लगातार प्रेरित होकर संघर्ष और हार को जीत में बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि मानवीय रिश्ते की बेहतरी के लिये लोगों को ही बदलाव के लिये लगातार प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में मोबाइल एवं सोशल मीडिया का उपयोग कैसे हो, इसको बताने की आवश्यकता है।

 


 

डॉ. कुमार ने कहा कि प्रत्येक बच्चा यूनिक होता है, लेकिन सभी एक जैसे नहीं होते। अतः माता-पिता को यह समझना चाहिये कि वे बच्चे को क्या देना चाहते हैं। उन्होंने सलाह दी कि कुछ चीजे समय के लिये छोड़ देनी चाहिये। उन्होंने कहा कि फेलियर परमानेंट नहीं होता और सही रास्ते पर जाकर उसको जीत में बदला जा सकता है। डॉ. कुमार ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था, महिलाओं की स्थिति, छात्र-छात्राओं में संवाद, दिल्ली, जवाहर लाल नेहरू एवं हॉवर्ड विश्वविद्यालय के गुण दोष, शिक्षा व्यवस्था सहित अन्य पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।

 

पुस्तक कटिहार टू कैनेडी ः द रोड लेस ट्रैवेल्ड पर चर्चा करते हुये डॉ. कुमार ने कहा कि यह एक ऎसे आम व्यक्ति की विशिष्ट यात्रा की कहानी है, जहाँ वह अपने संघर्ष और अथक परिश्रम के बल पर बिहार के छोटे से शहर कटिहार से निकलकर कैनेडी तक की यात्रा करता है। यह आत्मकथा एक व्यक्ति के आन्तरिक और बाह्य विकास की कथा है, जहाँ अपनी गलतियों से सीखते हुए वह आगे बढ़ता जाता है और अपनी प्रतिभा और जज्बे के दम पर कैम्बि्रज के हार्वर्ड कैनेडी स्कूल में दाखिला ले पाने में सफल होता है।

 

 इस पुस्तक में एक व्यक्ति की अन्तर्यात्रा, उसका मनोविज्ञान, उसके जीवन के हार-जीत के क्षण इस तरह वर्णित किये गये हैं कि यह सिर्फ एक व्यक्ति की कथा नहीं रह जाती बल्कि उन सभी व्यक्तियों की कथा बन जाती है जो सीमित संसाधनों और अभावों के बीच भी निरन्तर खुद को परिष्कृत करते रहते हैं और अन्ततः अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं, तथा स्वयं के साथ-साथ समाज के वंचित समूह के विकास के लिए भी प्रतिबद्ध होते हैं। उनकी यात्रा एक सतत प्रेरणा है, उनकी अपनी प्रेरणाएँ उदार, गहन और नित्य हैं। वे अपनी परिस्थितियों और विकल्पों को पाठक के सामने रखते हैं, और अपने विशिष्ट संघर्ष की परिस्थितियों से भटके बिना सहज सहानुभूति के माध्यम से संकीर्णता को पार करते हैं।

 

लेखक परिचय

 

डॉ. संजय कुमार वर्तमान में द लक्ष्मी मित्तल एंड फैमिली साउथ एशियन इंस्टीट्यूट, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के भारतीय निदेशक हैं। डॉ. कुमार को अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने मास्टर इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में पीजी पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद मैसन फैलो उपाधि से सम्मानित किया है। स्व. बैद्यनाथ प्रसाद सिंह एवं तिला देवी के पुत्र संजय ने स्कूली शिक्षा शहर के हरिशंकर नायक उच्च विद्यालय से पूरी की। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में पीजी एवं जेएनयू से एमफिल एवं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। सेवा भारत संस्था से जुड़ कर उन्होंने असंगठित क्षेत्र की महिला श्रमिकों के लिए देश के विभिन्न प्रदेशों में कई काम किये। राष्ट्रीय अखबारों में वह निरन्तर सामाजिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं।