कवि एवं अभिनेता प्रतीक महन्त की कलम से :-
ए मेरे मेहबूब तुम तो
गुल खिलाये ख़ूब तुम तो
तुम भी साथी, मैं भी साथी
क्यों खड़े हो दूर तुम तो...
पास आके सुन तो लो तुम
लाठियों में अब नहीं दम
जेल क्या हमसे भरोगे
साथ क्या तुम भी रहोगे...
साथियों के अंदाज़ यौवन
चूड़ियों की आवाज़ खन-खन
सोहबतें चंगा सी हमारी
तोड़ते यूँ क्यों हो चन चन...
जम्हूरियत में शूल तुम तो
ए मेरे महबूब तुम तो
गुल खिलाये ख़ूब तुम तो
तुम भी साथी मैं भी साथी...
क्यों खड़े हो दूर तुम तो
मीठी सी आवाज़ में बस
बोलते हैं स्वर अलग हम
स्वर, जिसे तुम साध ना पाए....
तारीखे जिसे बाँट ना पाए
लाठियों की राग तुम तो
बाँचते हो आज तुम तो
ऐसे तुम क्या रोक लोगे...
क़दम क़दम क्या झोंक दोगे
मुस्तक़बिल के हूर हम तो
ए मेरे महबूब तुम तो
गुल खिलाये ख़ूब तुम तो...
तुम भी साथी मैं भी साथी
क्यों खड़े हो दूर तुम तो...