संवाददाता : भोपाल मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश देश का हृदय स्थल होने के साथ विभिन्न आंचलिक और पारम्परिक संस्कृतियों, कलाओं और पुरातत्व के मामले में भी समृद्ध है। प्रदेश की यह अमूल्य पहचान विकास की अंधी दौड़ में कही गुम हो गई थी। कमल नाथ सरकार ने अपने प्रारंभिक एक साल में इस पहचान को पुन: स्थापित करने के साथ उसके सरंक्षण-संवर्धन की भी बहुआयामी कोशिशें की हैं।
पिछले कई वर्षों से रुकी साहित्य कला, चित्रकला, रंगमंच आदि क्षेत्रों में पुरस्कार और सम्मान की परम्परा को नई सरकार ने पुनर्जीवित किया। साहित्य में हिन्दी के साथ उर्दू साहित्य, के लिये भी पुरस्कार इस दौरान स्थापित किये गये। राज्य शिखर सम्मान से विभिन्न क्षेत्रों की विभूतियों को अलंकृत किया गया। लता मंगेशकर अलंकरण समारोह को भी पूर्ण भव्यता के साथ करने का निर्णय लिया गया। प्रदेश के स्थापना दिवस के मौके पर भोपाल सहित जिला मुख्यालयों पर गरिमामय सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये।
महापुरूषों का स्मरण
देश के नव-निर्माण के प्रणेता महापुरूषों को भी राज्य सरकार ने इस अरसे में याद किया और सम्मान भी दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को समारोह पूर्वक वर्ष भर मनाया जा रहा है। इस दौरान समाज, विशेषकर युवा पीढ़ी को गांधी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अवगत कराने के लिये हर स्तर पर रचनात्मक गतिविधियाँ की जा रही हैं। इसी तरह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की 130वीं जयंती को भी पूरे वर्ष मनाया जा रहा है। इन महापुरूषों के संदेश गाँव-गाँव, घर-घर पहुँचाये गये। इससे समाज में देशप्रेम की भावना का संचार हुआ। युवा पीढ़ी को नई सोच और नई दिशा दी गई।
आंचलिक संस्कृति का संरक्षण
मध्यप्रदेश में आंचलिक संस्कृति के संरक्षण के लिये भी प्रयास शुरू किये गये। मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ ने मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह में वर्ष 2020 को गोंड कलाओं का वर्ष घोषित किया। प्रदेश में गोंड कला वर्ष की गतिविधियाँ शुरू हुई। इससे राज्य के गोंड आदिवासी चित्रकारों के बनाये चित्र देश-विदेश में प्रदर्शित किये जाएंगे। मध्यप्रदेश में रहने वाले अन्य आदिवासियों की कला प्रतिभा को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। जन-जातीय संग्रहालय भोपाल में कार्यक्रमों की नियमित श्रंखला चल रही है।
राज्य सरकार ने मालवा, निमाड़, विन्ध्य, चम्बल, बुन्देलखण्ड और महाकौशल अंचल की अपनी अलग-अलग संस्कृति को संरक्षण प्रदान किया है। आँचलिक बोलियों के कलाकारों को कला प्रदर्शन के मंच उपलब्ध करवाये गये। प्रदेश की सांस्कृतिक छवि को राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उभारने के प्रयास प्रारंभ किये गये।
वादों को प्राथमिकता से पूरा करने की पहल
राज्य सरकार ने अपने वचन-पत्र के वादों को प्राथमिकता से पूरा करने की पहल शुरू की। सतना जिले के मैहर में उस्ताद अलाउद्दीन खां की स्मृति में संस्थान की स्थापना के लिये 2 करोड़ का प्रावधान किया गया। तानसेन समारोह की तर्ज पर प्रतिवर्ष बैजू बावरा संगीत समारोह मनाने का निर्णय लिया। साहित्यकारों, कलाकारों को मासिक पेंशन, ललित कला, साहित्य, नाटक, चित्रकला, संगीत, गायन, वादन आदि क्षेत्रों में प्रदेश के कलाकारों के रचना, कौशल को संरक्षण और प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के नाम से जिला और राज्य स्तर पर सम्मान समारोह की परम्परा शुरू की गई।
गोंडी चित्रकला केन्द्र स्थापित करने, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, दुष्यंत कुमार, बालकवि बैरागी, इकबाल, विट्ठल भाई पटेल आदि की स्मृति में सम्मान स्थापित करने की कार्यवाही शुरू की गई। उभरते गायकों को पुरस्कृत करने के लिये नये पुरस्कार प्रारंभ किये गये। ग्रामीण क्षेत्र की संगीत मण्डलियों को वाद्य यंत्र किट प्रदान करने की योजना शुरू करने का निर्णय भी प्रचलन में है। वर्ष 2020 से आदिवासी और दलित वन लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिये 21-21 हजार रूपये के सम्मान प्रदान किये जाएंगे।
महापुरूषों का स्मरण
देश के नव-निर्माण के प्रणेता महापुरूषों को भी राज्य सरकार ने इस अरसे में याद किया और सम्मान भी दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को समारोह पूर्वक वर्ष भर मनाया जा रहा है। इस दौरान समाज, विशेषकर युवा पीढ़ी को गांधी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से अवगत कराने के लिये हर स्तर पर रचनात्मक गतिविधियाँ की जा रही हैं। इसी तरह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की 130वीं जयंती को भी पूरे वर्ष मनाया जा रहा है। इन महापुरूषों के संदेश गाँव-गाँव, घर-घर पहुँचाये गये। इससे समाज में देशप्रेम की भावना का संचार हुआ। युवा पीढ़ी को नई सोच और नई दिशा दी गई।
कला मन्डलियों को प्रोत्साहन
आदिवासी लोक जीवन से जुड़े गायन, वाद्य यंत्र, वेशभूषा, चित्रकला, काष्ठ कला आदि के संरक्षण के लिये कलाकारों और संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जायेगा। प्रदेश में हरबोलों और आल्हा की परम्परा के संरक्षण के लिये कला मण्डलियों को पुरस्कृत किया गया है। शंकरशाह की शहादत को चिर-स्मरणीय बनाने संग्रहालय निर्माण के लिये 2 करोड़ की राशि मंजूर की गई। निमाड़, मालवा, बुंदेलखण्ड, बघेलखण्ड, महाकौशल और चंबल क्षेत्रों में मेलों के आयोजन के लिये भी कार्यवाही की गई है। आदिवासी समाज की स्थानीय भाषाओं के गीतों और कविताओं के संरक्षण के लिये पोर्टल शुरू किया गया। अब प्रदेश में दूर-दराज के गुमनाम कलाकारों को भी संगीत और कला के मंच पर प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर दिये जाने का निर्णय लिया गया है। अब प्रदेश में कला, संस्कृति और इनके संवाहकों को सम्मान मिल रहा है।