कवि नारायण डबराल की कलम से :-
ये जो सामने ऊँची दीवार है
ये जो सामने ऊँची दीवार है
सिर्फ़ ए भ्रम व मायाजाल है।
हौंसले बुलन्द हैं मेरे इतने
बस ऊँची छलाँग का सवाल है।
ये जो सामने
सिर्फ ए भ्रम
इधर काँटे शीशे बिखरे पड़े
कीचड़ कंकड़ रोड़े गड़े पड़े।
मै जानूँ दीवार के पार का हाल
एक मख़मली भविष्य तैयार है।
ए जो सामने
सिर्फ़ ए भ्रम
बाधा से विचलन न स्वभाव मेरा
परी़क्षा ये मन के उत्साह की।
मेरे जुनून की , मेरे संस्कार की
रगों मे गर्म ख़ून का जो उबाल है।
ए जो सामने
सिर्फ ए भ्रम
मेरे मित्र हैं ,पर कुछ शत्रु भी
सबका अपना अपना अंदाज है।
सब देते रहते हैं अनुभाव मुझे
बस सही परख का कमाल है।
ए जो सामने
सिर्फ ए भ्रम
न ठहराव,झुकाव न कुप्रभाव है
क्षितिज की ज्योति की चाह है।
न शौर्य,बल न चाह का अभाव है
ये तो रोशन जीवन की मशाल है ।
ए जो सामने
सिर्फ ए भ्रम
अपने पर भरोसा पूरा मुझको
अपनों पर उससे कई अधिक।
बस संग चलने का खयाल है
फिर दीवार की क्या मजाल है।
ये जो सामने ऊँची दीवार है
सिर्फ़ ए भ्रम व माया जाल है ।
जीवन में आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा को दीवार से सम्बोधित किया गया है।