कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम डबराल की कलम से :-
"एक फूल गिर गगन से, ले सकता जब जान"
एक फूल गिर गगन से, ले सकता जब जान
कैसे करती रोज वह, जीवित रह विष- पान l
लूट गयी हैं आँधिया, पत्ते फूल सुगंध
रेत- रेत मन हो रहा, टूट गये बंधन l
बिछूड़े अब दिल से किसी के,भीगे से है नैन
बरस - बरस कर थक गयी,
पर मिला ना मन का चैन l
टूट -टूट कर गिर गये, देख किसीको उदास....
फिर याद आ गया,
आज तेरा प्यार l
हर झील से निशछल, एक कोमल फूल हू , रंग मे मिलने दो अपने...मै मीठी नीम सी हूं l
हर छन तुझको जिन्दगी ही दूँगी
रो मत पागल ! चल सम्भल भर नयी उमंग l
कुछ टुटा, कुछ जुडा, सायद यही दुनिया का रंग ll