गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

"मैं जब जब आशाओं के दीप जलाती हूं" कवयित्री कुसुम डबराल की कलम से...

 कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम डबराल की कलम से  :-


 


हे शिवा हे शिवा ।। 


मैं जब जब आशाओं के दीप जलाती हूं 
ना जाने क्यों मन अंधेरे में डूब जाता है 
मेरे जीवन की अब हर सुबह डूब सी गयी है
घनेरे शाम में ....... 



हर रोज सुबह सूरज की किरणें तो आती है 
पर खिली धूप नही मिलती मुझे ।।
मेरा दर्द उपहार में मिला है मुझे,
अब तो हर वेदना को सहना है हमे 
हे शिवा तेरे नाम की माला , वस्त्र धारण 
     किये हूं मैं 



वैरागी जीवन मे अब सुख दे मुझे ।
तेरे नाम की पूजा भी अब होती नही ,
मेरे वियोगी मन को भक्ति में मगन कर अपनी।
मेरी ह्रदय पीड़ा को विराम दे शिवा ......
मेरे अन्तर मन को विश्राम दे शिवा 
      हे शिवा हे शिवा ।।