कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम डबराल की कलम से :-
" ख्वाबो का इंतजार "
अभी ना उठा नींद से मुझे
तेरे ख्वाब आने बाकी है
अभी तो सवालो का सिलसिला चला है
उनके जवाब आने बाकी है
अभी तो जलना शुरू हुआ है
मेरे शहर में बरसात होना बाकी है
अभी तो जख्म मिले हैं
जख्मों का हिसाब होना बाकी है
अभी तो शुरूआत है एक शायर की
शायरी का गजल होना बाकी है
अभी तो शुरूआत है बातों की
मेरी बातों का अल्फाज होना बाकी है
किसी का इंतकाम बाकी है
किसी का इजहार बाकी है
मगर मेरे लिए तो बस
तेरा इंतज़ार बाकी है...