कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम डबराल की कलम से :-
"न छुड़ाओ हाथ अपना हमसे "
न छुड़ाओ हाथ अपना हमसे...
दो कदम साथ अपने चलने दो ,
मिलने दो कदम से कदम साथ
चलने की इजाजत दे दो।
न रोको हवाओं के रुख को
हमको भी जरा सांस लेने दो ,
छू लेने दो अपने कदमों की धूल
हमको भी जरा निहाल होने दो ।
बड़ी जुस्तजू थी साथ चलने की
तेरी अपनी बाहों का जरा सहारा दे दो ।
मिल जाने दो जरा अपनी रूह में...
अपनी सांसों की खुशबू हमको दे दो ,
पाना तुमको जरूरी नहीं
अपने साथ तो थोड़ा होने दो...
दो कदम तुम हम को साथ ले लो ।
बेवफा दिल इजहार कर बैठा
हमको खुद से एक हल्की सी मुलाकात दे दो
बस अपने पास होने की थोड़ी सी इजाजत दे दो ।।