कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता नम्रता "लॉक डाउन का इश्क़" की कलम से :-
"लॉक डाउन का इश्क़"
आज ज़रा गौर कर लें हम-तुम,
कलरफुल जामा पहने,चेहरे पर...
पाउडर ज़रा भरपूर लगा
अभी निकले ही थे घर से, कि...
क्या हीं बतायें इस लॉक डाउन ने ,
ये कैसा मंज़र दिखाया, अब देखो तो...
पुरुषों को भी महिला बनाया,पहली बार उन्होंने,
चार दीवारी में ख़ुद को बंद पाया(अब समझ आया)...
वहाँ,आपसी रिश्तों का द्वंद्व बढ़ाया जहाँ,
मनभेद, मतभेद छोड़, प्रतियोगी बनाया...
रिश्तों की गर्माहट को ताक पर रख
शह और मात का अखाड़ा बनाया...
पर, हमने इस बंद का पूरा फ़ायदा उठाया
छोड़ दुनिया की चक-चक...पक-पक...
लॉक डाउन के इस मौसम में,
ख़ुद से ही मुहब्बत का माहौल बनाया और...
कुछ इस तरह से हमने,
अपने 'मैं' से इश्क़ फ़रमाया।