लेखक एवं एंकर प्रिया चौहान की कलम से :-
ज़िंदगी जीना एक कला हैं मगर इस कला को सीखों और सीखाओ तो सही...
डिप्रेशन का बीज तो बच्चें में बचपन से बो देते है,
उस जैसा बनो !
ऐसा करों , वैसा करों !
एक बार बोलकर तो देखों, साथ खड़ा हूँ आगे बढ़ों,
ज़िंदगी जीना सिखाओ,
क्या बनेगा, क्यों बनेगा और कैसे बनेगा वो खुद तय कर लेगा, लड़ना सिखाईये बस...
उसकी कामयाबी में जितना सीना तानकर गर्व करते हैं, उसकी नाकामयाबी में उसके कंधे पर हाथ रखकर बैठों तो सही ना,
अकेलापन हमेशा एकांत नहीं होता, ऐसे ही ख़ामोशी हमेशा ख़ुशी नहीं होती।
डिप्रेशन एक दिन का नहीं होता ना ही एक घटना से पैदा होता हैं ये बचपन से कुछ गठरियों में बंद होता है और समय के साथ अगर अच्छा साथ या साथी ना मिलें तो इंसान टूट जाता है।
अच्छा साथ और प्यार मिलें तो दीपिका वरना सुशांत सिंह हो जाता हैं।
अपनों के साथ रहे उनको समझे और तनाव में साथ ना छोड़े।