कवयित्री श्वेता सिंह की कलम से...
" चाहना फिर भी सिर्फ मुझे "
अपने लिए किसी और को चाहना
किसी के लिए खुद अपने आप को,
दोनों ही सूरत में मिल जाएगा
ये नासमझ दिल अपनी मंज़िल से,
राहत में जी सकेगा, सुकूँ से मर सकेगा
एक मुहब्बत भरे दिल के आग़ोश में...
कुछ भी तो नहीं ज़िंदगी सिवा एक ख़्वाब के,
देखूँ जिसे इस राह में, जो हो शुरू
मेरे ज़हन से और रुके तेरी निगाह पे...
अब चाहो कुछ और
तो दूरियों का शुक्रिया करना
वो बहुत नज़दीक ला रही हैं,
हवा में भी अब तेरी ख़ुशबू आ रही है,
मैं नहीं ये तो बादल कह रहे हैं
तेरी तरफ से मेरी जानिब बह रहे हैं...
अब भी वक़्त है रुकने को कह दो मुझे
रहने दो तन्हा एक ज़रा सा ग़म देकर,
बचा लो इस तकलीफ से दिल को
न रहो बेशक़ ज़िंदगी में मेरी, मगर
"चाहना फिर भी तुम सिर्फ मुझे ही "।