प्रजा दत्त डबराल @ नई दिल्ली
दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुछ काँलेज दिल्ली सरकार और छात्रों से पैसा लेकर FD में डालते जा रहे हैं और फिर सरकार से बेहिसाब फंड की माँग करते जा रहे हैं। नियम के मुताबिक़ विभिन्न श्रोतों से इन कोलेजों को जितना पैसा मिलता है, उसे उनके कुल खर्च में से कम करके जो पैसा ज़रूरत होगी वह दिल्ली सरकार द्वारा दिया जाएगा।
लेकिन जब दिल्ली सरकार ने इन काँलेजों से आय के स्रोतों का हिसाब किताब माँगा तो उन्होंने यह देने से माना कर दिया। अगर दिल्ली सरकार को ये कोलेज यही नहीं बताएँगे कि इनके इतने खर्चे कैसे हो गए, जो दिल्ली सरकार द्वारा दिए जाने वाला सैलेरी मद के बजट को ढाई से तीन गुना तक बढ़ा देने के बावजूद पूरे नहीं हो रहे, तो दिल्ली सरकार बेहिसाब फंड कैसे उपलब्ध करवा सकती है? एक तरफ़ काँलेज कह रहे हैं कि उनके पास सेलरी देने के पैसे नहीं हैं इसके उलट उनके पास FD में पैसा लगातार बढ़ता जा रहा है. ये पैसा दिल्ली सरकार से FD में रखने के लिए नहीं दिया जाता. कुछ काँलेजों के पास तो 15 से 30 करोड़ रुपए तक FD में डालकर रखे गए हैं।
इसमें कितने पैसे कहाँ से आए? इनका क्या इस्तेमाल किया जा रहा है. यह सब ऑडिट टीम को जाँच करनी है. मुझे उम्मीद है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रशासन कालेज फंड्स में हेराफेरी की सम्भावनाओं की खुलकर जाँच कराने में सहयोग करेगा।
दिल्ली यूनिवर्सिटी एक बेहद शालीन इतिहास वाली यूनिवर्सिटी रही है. मुझे उम्मीद है कि इसमें पैसों को लेकर किसी तरह के भी सवाल उठने पर डीयू प्रशासन राजनीतिक बयानबाज़ी करने की जगह सख़्त कार्रवाई करेगा ताकि यूनिवर्सिटी की पारदर्शिता और साफ़ छवि पर आँच न आए।