मंगलवार, 10 नवंबर 2020

राष्ट्रीय शिक्षा नीति विद्यार्थी की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुसार गढ़ने का अवसर...

 संवाददाता : भोपाल मध्यप्रदेश

राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति विद्यार्थी की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुसार गढ़ने का अवसर है। शिक्षकों को शिक्षण काल में छात्र-छात्राओं में उत्साह, अनुशासन और अनुभव के गुणों का समावेश कर, उनको आत्म निर्भर बनाने की चुनौती को स्वीकारना होगा। यह बात राज्यपाल ने सोमवार आई.ई.एस. विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कही। राष्ट्रीय शिक्षा नीति अवसर एवं चुनौतियां विषय पर आयोजित वेबिनार के मुख्यवक्ता चेयरमैन नेशनल एक्रेडेशन बोर्ड प्रो.के.के. अग्रवाल थे।

राज्यपाल पटेल ने कहा कि देश के उज्ज्वल भविष्य के सपनों को साकार करने की दिशा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक बड़ा कदम है। नीति नवाचारी और दूरगामी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षा व्यवस्था में बड़े परिवर्तनों के लिए आऊट ऑफ बॉक्स सोच के साथ कार्य करने की कोशिश है, जिसमें संस्कृति, जीवन मूल्यों के संरक्षण और जड़ों से जुड़े रहने की मजबूत संकल्प शक्ति भी है। इसमें शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता की उत्कृष्टता पर विशेष बल दिया गया है। इसे लागू करने के लिए उस की अवधारणा, प्रावधानों और अपेक्षित परिणामों पर व्यापक विचार विमर्श जरुरी है। नीति में दीर्घकालिक दिक्कतों को दूर करने के साथ ही भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के प्रयास किए गए हैं। देश के 200 शीर्ष संस्थानों को पूर्ण स्वायत्तता, प्रतिस्पर्धी और समकक्ष समीक्षा वाले अनुदान प्रस्तावों को वित्तीय सहायता देने के लिए स्वतंत्र राष्ट्रीय शोध फंड, उच्च शिक्षा निगम को बाजार से दीर्घावधि के ऋण जुटाने की अनुमति और विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में स्थायी केंद्र स्थापित करने की इजाजत देने जैसी बहुआयामी पहल हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे कार्यबल में केवल 5 प्रतिशत ही व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त हैं। आगामी 5 वर्षों में इसे 50 प्रतिशत करने के लिए व्यवसायिक और तकनीकी शिक्षा को नये मायने देने होगें। भारतीय परंपरा में विकसित ‘लोक-विद्या’ को उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ना होगा। लोक विद्या को मुख्यधारा की शिक्षा का अंग बनाया जाए। उसे बराबर का सम्मान मिलें, ताकि बच्चों और युवाओं में कौशल वृद्धि के साथ-साथ श्रम की गरिमा के प्रति सम्मान का भाव भी पैदा हो। शैक्षणिक संस्थानों का वातावरण, ऐसा होना चाहिए, जहां विद्यार्थी को जो चाहिए, वह उन्हें मिल जायें। दुनिया भर की जानकारी, हमारी संस्कृति, परंपरा, जीवन मूल्यों के ज्ञान और संस्कार के साथ विद्यार्थी शिक्षा केन्द्र से बाहर जाए।

राज्यपाल ने कहा कि उच्चतर शिक्षा प्रणाली में ऐसी व्यवस्था को बढ़ाना होगा, जिसमें होनहार लोगों का चयन हो, उनकी आजीविका, मान-मर्यादा और स्वायत्तता सुनिश्चित रहे। शिक्षण पाठ्यक्रम ऐसा हो जो विद्यार्थियों में अन्वेषण, समाधान, तार्किकता और रचनात्मकता विकसित करे। छात्र-छात्राओं में आवश्यकता के अनुरूप दक्षता और नई सोच पैदा करें। उन्होंने कहा कि कोविड-पश्चात विश्व में अनुसरण की बजाए, हमें मौजूदा परिपाटियों से आगे बढ़ने के प्रयास करने चाहिए। हमें अपने कौशल एवं अपनी क्षमताओं का सर्वश्रेष्ठ उपयोग कर, भारत को विश्व गुरू के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से कहा कि नीति के मूलभूत परिवर्तनों को कैसे उपयोगी बनाना है। इस पर चिंतन करें। मुड़कर देखें कि क्या दिक्कतें और समस्याएं आईं। उनसे सबक लेकर भविष्य के पथ का निर्देशन करें।

मुख्य वक्ता प्रो.के.के. अग्रवाल ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रारम्भिक से शीर्ष स्तर की शिक्षा की पहल है। सफल क्रियान्वयन के लिए बड़ी सोच के साथ प्रतिबद्ध प्रयास जरुरी है। उन्होंने कहा कि शिक्षा की एकाकी व्यवस्था से बाहर निकलना होगा, तभी समाज को मूलभूत समस्याओं के समाधान दिए जा सकते हैं। बहुआयामी सोच के साथ प्रयास किये जाना जरुरी है। ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि एक विषय में गहराई से ज्ञान के साथ अन्य विषयों की भी जानकारी हो। ज्ञान और कौशल को समायोजित करते हुए बच्चों के ज्ञान को उजागर करना होगा। आभार प्रदर्शन प्रो.-चांसलर आई.ई.एस. विश्वविद्यालय डॉ. सुनीता सिंह ने किया।