मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

नगरनार इस्पात संयंत्र के विनिवेश की स्थिति में छत्तीसगढ़ सरकार इस संयंत्र को खरीदेगी : भूपेश बघेल

 संवाददाता : रायपुर छत्‍तीसगढ़

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोमवार यहां विधानसभा में शासकीय संकल्प पर चर्चा के दौरान यह घोषणा की कि भारत सरकार बस्तर के नगरनार इस्पात संयंत्र का डिस्इंवेस्टमेंट न करे, डिस्इंवेस्टमेंट की स्थिति में छत्तीसगढ़ सरकार इस संयंत्र को खरीदने के लिए तैयार है। इस संयंत्र को निजी हाथों में नहीं जाने देंगे। छत्तीसगढ़ सरकार इसे चलाएगी। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद सदन में यह शासकीय संकल्प - ‘यह सदन केन्द्र सरकार से यह अनुरोध करता है कि भारत सरकार के उपक्रम एनएमडीसी द्वारा स्थापनाधीन नगरनार इस्पात संयंत्र, जिला बस्तर का केन्द्र सरकार द्वारा विनिवेश न किया जाए। विनिवेश होने की स्थिति में छत्तीसगढ़ शासन इसे खरीदने हेतु सहमत है’ सर्वसम्मति से पारित किया गया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह छत्तीसगढ़ विधानसभा के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। उन्होंने कहा कि सवाल छत्तीसगढ़ की अस्मिता का है, बस्तर के आदिवासियों का है। बस्तर के लोगों का इससे भावनात्मक लगाव रहा है। जमीन सार्वजनिक उपक्रम के लिए दी गई थी, खदान भी एनएमडीसी को इस शर्त पर दी गई थी कि एनएमडीसी यहां इस्पात संयंत्र लगाएगा। राज्य शासन की भी और जनता की भी यह मंशा थी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि नगरनार के मामले में भारत सरकार के आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने नवंबर 2016 को एनएमडीसी की नगरनार स्टील प्लांट के 51 प्रतिशत शेयर निजी क्षेत्र की कंपनी को बेचने की सहमति दी। दुर्भाग्यजनक बात है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखा कि यदि इसे निजी  हाथों में सौपा जाएगा तो नक्सली गतिविधियों को काबू करना कठिन हो जाएगा। इसे सितंबर 2021 तक पूरा कर लेने का भी निर्णय हो चुका। उन्होंने कहा कि यदि डिमर्जर का निर्णय लिया जा रहा है तो यह किसके डिमर्जर का निर्णय है। क्योंकि संयंत्र और खदान दोनों एक ही के द्वारा संचालित हैं। नगरनार इस्पात संयंत्र को अलग यूनिट मान लिया गया।

बघेल ने कहा कि 637 एकड़ शासकीय और 1506 एकड़ निजी भूमि है। आदिवासियों ने इस शर्त पर जमीन दी कि यहां सार्वजनिक उपक्रम लगे। भारत सरकार के विधि सलाहकार, परिसंपत्ति मूल्यांकन-कर्ता द्वारा भी बार-बार आपत्ति दर्ज कराई गई कि इस संयंत्र को नहीं बेचा जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि विपक्ष का कहना है कि निजीकरण की शुरुआत हमारी सरकार के समय हुई, वे बिलकुल ठीक कह रहे हैं। जब नरसिंहराव प्रधानमंत्री और श्री मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे, तब इसकी शुरुआत हुई। लेकिन इस बात पर ध्यान देना होगा कि जो बीमार और घाटे पर चल रहे उपक्रम थे, जिनकी बैलेंस शीट पांच वर्षों से घाटा दर्शा रही थी, उनकी सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद ही उन्हें बेचा जा सकता था। लेकिन आपके शासनकाल में तो डिस्इनवेस्टमेंट के लिए अलग ही विभाग खोल दिया गया। 

बघेल ने कहा जब आपने नगरनार इस्पात संयंत्र के डिस्इंवेस्टमेंट का फैसला ले लिया है, तो फिर एमएमडीसी से प्लांट तक आयरन ओर पाइप से आए इसके लिए अभी 1400 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट क्यों कर रहे हैं ? ताकि पका पकाया फल आप दे दें ! उन्होंने कहा कि  टाटा को आपने जमीन दी थी। 2016 में टाटा ने लिख कर दे दिया था कि वह संयंत्र नहीं लगाना चाहता। इसके बावजूद वह जमीन आपने लैंडपुल में रख दी। वहां  किसान समर्थन मूल्य पर अपने धान नहीं बेच पा रहे थे, सोसायटी से लोन नहीं ले पा रहे थे। 

बघेल ने कहा कि हम बस्तर के आदिवासियों, परंपरागत निवासियों, सबका विश्वास जीतने की कोशिश कर रहे हैं। चाहे जमीन वापस करने की बात हो, चाहे तेंदूपत्ता का समर्थन मूल्य बढ़ाने की बात हो, चाहे व्यक्तिगत पट्टे, सामुदायिक पट्टे, लघु वनोपज जो सात खरीदते थे उसे बढ़ाकर 52 करके वैल्यूएडीशन की बात हो, स्थानीय लोगों को रोजगार देने की बात हो, लगातार हमारी कोशिश है कि हम विश्वास जीतें। उसका परिणाम है कि आज नक्सली पाकेट में सिमट गए हैं।