सोमवार, 13 अप्रैल 2020

"बरसात" प्रो.वीरेन्द्र सिंह नेगी की कलम से कहानी...

हिमालयी साहित्य खजाना श्रृंखला के अंतर्गत "बरसात"  प्रो.वीरेन्द्र सिंह नेगी की कलम से कहानी...


" बरसात "


आज मौसम खराब है। सुबह से वे सब तैयार होकर बारिश के रुकने का इंतजार कर रहे हैं। कई बार लोग विदा लेने के लिए आकर चले भी गए पर शायद जाने का मुहूर्त ठीक नहीं है। उधर बाहर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही और अंदर सरस्वती की आंखों से बहते आंसू। पता नहीं अब कितने महीनों बाद मिलना होगा। पिछली बार गए थे तो कह कर थे कि बस जल्दी आऊंगा, पर इनके बदले कुल 3 चिट्ठी ही आईं। खोलदार की दो व्यो शादियों में भी नहीं आए।


12 दिन की छुट्टी आए और पता ही नहीं चला कब यह 12 दिन गुजर गए। 2 दिन जंगल का चिरान, 2 दिन खेत की टूटी मेंढ को ठीक करने में, दो बार बजार ही जाना पड़ा, 2 दिन घर की लिपाई पुताई में लग गए। चलो इस बार पितरों की पूजा भी हो गई। सरस्वती भीतर खोल रो-रो कर इन 12 दिनों का हिसाब कर अपने मन को दिलासा दे रही है। धनवीर ने ब्याह  के बाद कहा था कि जल्दी ही उसे दिल्ली बुलाएगा, पर आज 8 महीने बाद दिल्ली फिर अकेले ही जाने को तैयार है। 



19 साल की सरस्वती को अपना गांव खूब याद आता है। तीन भाइयों की सबसे छोटी बहन। प्रेम प्यार से पली बढ़ी। स्कूल में सबसे आगे बैठने वाली और क्लास में सबसे फर्स्ट आने वाली सरस्वती ने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में चाहत का ऐसा अकाल पड़ जाएगा। मायके में हर घर की लाडली सरस्वती को कभी यह पता नहीं लगा कि रिश्तों की कमी क्या होती है। पता भी क्यों लगता पूरे खोलदार में 10 भाइयों की अकेली बहन जो थी। दादी दादा, चाचा चाची, ब्वाडा बोडी, फुफू, मै-ममा सभी रिश्ते नातों से भरपूर बचपन और उस पर सबके स्नेह, आशीष, प्यार और दुलार की भरपुर बौछार।


इस सब में जो सबसे खास बात थी वह थी कि इतनी गोदों की धनी सरस्वती ने कभी आंसू नहीं देखे। उसे किसी का गुस्सा डांट याद नहीं, पर अच्छे से याद बात बात पर रुसाना और फिर सबका उसे मनाना। अपने जीवन में नियम नहीं देखें, न घड़ी की सुइयों का पहरा और न कभी खाने-पीने की कोई कमी। कोई कमी उसके जीवन कभी नहीं रही। इतना बड़ा परिवार था उसका कि हर दिन खाने पीने की अच्छी से अच्छी चीज, पहनने का हर नया फैशन और खेत, खलिहान, जंगल में घूमने और  काम करने की पूरी छूट। अपनी मनपसंद जिंदगी जीने की आदत और परिवेश ने सरस्वती को आसपास के गांवों में एक देवी से कम रुतबा नहीं दिया हुआ था। धनवीर का घर बार भी एक दमदार आजाद हिंद फौज रिटायर्ड फौजी परिवार और पढ़े लिखे लोगों से है।


गांव के विकास कार्यों का जायजा लेने डीएम साहब के साथ धनवीर के पिताजी ने जब सरस्वती के घर में चाय नाश्ता किया तो इठलाती फुदकती बच्ची को आनायास सी निहारते रह गए। कुछ दिनों बाद शहर से खबर आई की धनवीर आर्मी में भर्ती हो गया है। बच्चे की नौकरी लगने की खबर सुनते ही पिता के मन में उसका विवाह करने का ख्याल आया और फिर सरस्वती रिश्ता जुड़वाने रैबार भेज दिया। दो बड़े परिवारों का रिश्ता जुड़ने की खबर दूर-दूर तक फैल गई। जिसने भी सुना खूब दुआएं और आशीर्वाद धनवीर और सरस्वती को दिया। खूब धूमधाम से बरात गई और विवाह हुआ। 



सरस्वती को कहां पता था की बचपन की खुशियों का खजाना कहीं खो जाने वाला है। आज वह सोचती है कि विवाह वाले दिन भी उसकी विदाई के समय तक उसे कहां पता था कि घर बार, खेत खलिहान, रिश्तेदार, मौज मस्ती, लाड़ प्यार और बचपन एकाएक कहीं छिन जाने वाला है। गांव के बाहर तक उसे पैटाने आए सारे रौ रिश्तेदार और भाई भौजाई इतना रो रहे थे उसे कुछ समझ ही नहीं आया। गौंपार आते आते सब पीछे छूट‌ गए। छोटी चाची के लड़के उसके दो छोटे भाई उसके साथ ससुराल तक चले थे। बस इतनी सी कहानी थी उसके बचपन और घर के छूट जाने की।


ससुराल में आकर उसने हफ्ते भर में ही बड़े घर की बेटी होने का प्रमाण देते हुए सारे काम संभाल लिए। रात को सोने से पहले सास ससुर के कमरे में बिस्तर झाड़ना, पानी रखना, रसोई संभालना, लाइट और दरवाजे बंद करना और फिर अपने कमरे में जाकर खूब रोना। कोई दुख नहीं पर यादों में जिन्हें वह पीछे छोड़ आई है उनके लिए। सुबह उठकर फिर से रसोई में जाना, चूल्हा जलाना, चाय का पानी रखना, ओबरे जाकर जानवरों को बाहर निकालना, उन्हें घास डालना, सास ससुर को चाय पिलाना। इसके बाद पूरा लंबा दिन, जिस से गुजरना सरस्वती के लिए सबसे कठिन काम था।


धनवीर के साथ बिताया उसका एक सप्ताह उसके जीवन में बदलाव का एक अधूरा अध्याय सा है। भाइयों की याद में उसे धनवीर में अज्ञात सा रिश्ता नजर आता। एक नए इंसान के साथ खुलने में जितना समय लगता है सरस्वती और धनवीर दोनों को उससे कुछ अधिक ही लगा। समझते समझते वह दिन आ गया जब धनवीर को फिर से जम्मू कश्मीर रवाना होना है। उसने कहा था कि उसकी पोस्टिंग दिल्ली हो जाएगी और वह उसे जल्दी ही बुला लेगा। पूरी रात वह सो ना सकी।



अभी तो रिश्ता भी अनजान सा पर आशा भरा था। रात भर धनवीर के कंधे से लिपट कर सुबकती रही। सुबह उसके मुंह में चाय का घूंट भी जा सका था, तैयार होते धनवीर को देखते-देखते उसका मन भर आया था और आंसुओं का सैलाब पलकों पर आकर ठहर गया था। घर से देवता के मंदिर, वहां से सारी, फिर डांडा और फिर धार पर सड़क तक पहुंचते-पहुंचते कई बार उसके आंसू भरी गागर से छलक उठे थे। उसे इस बात की भी फिक्र थी कि यह रास्ता अकेले कैसे लौटेगी। बस में बैठते ही धर्मवीर ने पीछे मुड करो उसकी ओर देखा और विदा ली। जैसे आंखों आंखों में कहा जल्दी ही आकर साथ ले जाऊंगा। अब साथ ले जाने की बात ही सरस्वती के जीवन का  एकमात्र सहारा है। लाड़ प्यार और संस्कारों में पली सरस्वती  एक सुशील, कर्मठ, कुशल और मिलनसार  ब्वारी सरु हो गई। सारा प्यार और इंतजार दिल के किसी कोने में संभाल कर घरबार और आस-पड़ोस की दुलारी बन गई। 


महीने भर के अंदर धनवीर की चिट्ठी आई। दिल्ली बदली होने के लिए एप्लीकेशन लिख दी है। मां पिताजी के लिए पैरा और फिर इधर-उधर की खबर और आखिर में सरस्वती के लिए प्यार के चार बचन। सरस्वती की यादों का खजाना बढने लगा।  दूसरी चिट्ठी 2 महीने बाद आई। जम्मू कश्मीर बॉर्डर पर तनाव है दिल्ली बदली होने का नंबर नहीं आया। फिर सरस्वती के इंतजार में दो चिट्टियां एक सहारा सी बन गई। जब खाली बैठती बारी बारी से इनको पढ़ती और आंसू बहाती।


तीसरी चिट्ठी ने बहुत इंतजार कराया। 4 महीने बाद चिट्ठी आई इस बार लिफाफे में, उसके अंदर मां पिताजी के अलग और सरस्वती के लिए अलग-अलग चिट्ठी। उसे  बहुत अच्छा लगा कि मेरी चिट्ठी अलग है जो सिर्फ मेरी है। उसकी यादों, इंतजार और सौगात चिट्ठी का खजाना बड़ा हो रहा है। तीसरी चिट्ठी से उसे अनजान से धनवीर में प्रियतम की छवि दिखाई देने लगी। छुट्टी की एप्लीकेशन दी है। मिल गई तो जल्दी ही गांव आऊंगा। 


इन 7 महीनों में कभी सरस्वती ने इतना इंतजार जितना इस आठवें महीने किया। अब उसे चिट्ठी नहीं धनवीर का इंतजार है। हर रोज उसने दूर डांडा धार में जाती आती हर गाड़ी को निहारा। कब उसका धनवीर आ जाए, वह ये भी सोचती कि काश वो दूर से दिख जाए तो कैसे दौड़ कर उसे लेने आधे रास्ते तक जाएगी। वह रोज अपना कमरा झाड़ झपोड कर साफ़ करती। रोज दोपहर अच्छे से तैयार होकर इस इंतजार में रहती कि क्या पता आज वो आ जाए।



और उस शाम को खाना बनाते हैं उसने घर के बाहर किसी को बात करते और जूतों की आवाज से पहचान लिया था की धनवीर आ गया है। रोटी तवे चूल्हे पर छोड़ कर ही वह बाहर दौडी और उसके हाथ से समान ले लिया। सास ससुर भी  बेटे की खुशबू पहचान कर दौड़े दौड़े आए और ससुराल में सरु के ठहरे जीवन में फिर से बहार आ गई। खूब रोई  रात भर धनवीर से लिपट कर। मायके से ससुराल में बदली दुनिया में अभी तक सरस्वती को समझ नहीं आया था कि जिंदगी है क्या।


10 दिन की छुट्टी आया हूं। बदली नहीं हो पा रही है। बॉर्डर पर बहुत तनाव है। गोलीबारी हर समय और 24 घंटे वर्दी में। सब बताने के बाद भी सरस्वती भगवान का धन्यवाद किया कि धनवीर आज उसके साथ है। इन दिनों में धर्मवीर जहां-जहां गया सरस्वती को साथ ले गया। अब दोनों एक दूसरे को खूब समझने लगे। गांव से बाहर  होने पर वे दोनों एक-दूसरे का हाथ भी पकड़ने लगे हैं। धार से गांव तक के रास्ते धर्मवीर और सरस्वती अपने अपने बचपन एक दूसरे से साझा करते।


इतने लंबे इंतजार के बाद अब उनके जीवन में वसंत आया। सरस्वती हर एक पल को जी भर कर जी रही है। उसे पता है प्यार का यह मौसम जल्दी ढल जाएगा। शाम से ही बादल घिर आए हैं। कल सुबह की गाड़ी से धनवीर को निकलना है। फिर बादलों से पहले ही सरस्वती की आंखों से पूरी रात भर आंसू बरसते रहे।