रविवार, 24 मई 2020

करतार सिंह सराभा उन हजा़रों क्रांतिकारियों में एक हैं जिन्होंने भारत की आजादी के लिए कुर्बानी दी : प्रशांत सी बाजपेयी

प्रजा दत्त डबराल @ नई दिल्ली


।।क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी 'करतार सिंह सराभा' की 124 वीं जयंती पर शत् शत् नमन।।


      करतार सिंह सराभा उन हजा़रों क्रांतिकारियों में एक हैं जिन्होंने भारत की आजादी के लिए कुर्बानी दी।वे मात्र 19 साल की उम्र में फांसी के फंदे को झूल जाने वाले इस सपूत को उसके शोर्य, साहस, त्याग और बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाऐगा।


प्रशांत सी बाजपेयी (अध्यक्ष, स्वतंत्रता आन्दोलन यादगार समिति) ने हमारे संवाददाता को बताया की इतिहास के पन्नों में करतार सिंह सराभा ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन को नया मोड़ दिया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए करतार सिंह सराभा अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय गई। वहाँ पर उनका संपर्क लाला हरदयाल और बाबा सोहन सिंह भकना से हुआ जो अमेरिका में रहते हुए भी भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्नशील थे।



अप्रैल 1913 में " गदर पार्टी" की स्थापना की और "गदर" नाम का साप्ताहिक अखबार निकलने का फैसला किया गया। करतार सिंह सराभा ने गदर पार्टी की सदस्यता लेकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भागीदारी निभाई।  


करतार सिंह सराभा ने भारत के क्रांतिकारियों से मिलने का निश्चय किया,ताकि भारत में  विद्रोह की आग जलाई जा सके। इस मकसद से उन्होंने सुरेन्द्रनाथ बनर्जी,रास बिहारी बोस,शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि से भेंट की और विद्रोह कि योजना बनाई कि समस्त भारत में फोजी छावनियों एक ही दिन और एक ही समय अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह करेगें।


गदर पार्टी  कार्यकर्ताओंता,क्रातिकारियों और भारती फौजियों ने अंग्रेजों के खिलाफ 21 फरवरी 1915 कि दिन तैय किया था। लेकिन किरपाल सिंह ने ब्रिटिश सरकार को इसकी सूचना दे दी।फिर 19 फरवरी का दिन तय हुआ।इसका भी पता चल गया।


ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों के खिलाफ कारवाई शुरू कर दी।करतार सिंह सराभा और उनके साथियों के खिलाफ राजद्रोही,डकैती और कत्ल का मुकदमा चलाया।अदालत ने सराभा समेत सभी 24 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई।


इस लिए शहीदों के बताए रास्ते पर चलते देश की तरक्की, शान्ति व आपसी भाईचारे के लिए लोगों को जागरूकता पैदा करने की जरुरत है।