रविवार, 24 मई 2020

"कुंजुंम परी" प्रो.वीरेन्द्र सिंह नेगी की कलम से कहानी...

हिमालयी साहित्य खजाना श्रृंखला के अंतर्गत " कुंजुंम परी " प्रो.वीरेन्द्र सिंह नेगी की कलम से कहानी...


 


" कुंजुंम परी "



        (अमा ले-मां, अबा ले-पिता, अबि ले-दादी, मेमे ले-दादा, माचूंग ले-बुआ, अचो ले-बड़ा भाई, नोमो ले-छोटी बहन  )


तब मैं पैदा हो चुकी थी। अमा ने बताया गांव में सब ओर चहल पहल मच गई। 'ॐ मने पदमने हों' से सारा वातावरण गूंज पड़ा था और रिश्तेदारों ने  'माने तंजर' भेंट करने शुरू कर दिए।  'अमा' ने बताया कि माचूंग ने मुझे अपने हाथों में संभाल लिया था और अबि ने ही अमा का ख्याल रखा था।


सर्दियों के जाने से पहले मैं दुनिया में आई थी। अलसाई धूप, बर्फीली ठंडी हवाओं और पिघलती बर्फ से बहते पानी सी तरल ठंडी पड़ी खुश्क जमीन के गीले होने ही महक से चारों ओर मेरे आने की खुशी की खबर संगीत सी फ़ैल गई थी।


वो बताती हैं कि अबा का काम बढ गया था। वो भोर सुबह में सबसे पहले उठ जाते और लकड़ियों को इकठ्ठा कर आंगन से रसोई में ले जाकर आग सुलगाते। फिर गाय के बाड़े में जाकर उसके बछड़े को पिजाते, घास डालते और दूध दुहते। आंगन में आग जला कर पानी गर्म करने रखते। इसी बीच खेतों की मेड़ों को जोड़ तोड़ कर सब्जियों में पानी पैटाते।


अमा ने यह भी बताया कि अचो ले के बाद  घर में मेरे आने से  'मे मे' बहुत खुश थे। तब अबि से उनके झगड़े खत्म हो गये। क्योंकि अबि सारा समय अमा का ध्यान रखने, खाना पीना कराने, आग तपाने और गर्म कपड़ों से ढकने में लगाती। अमा ने बताया कि अचो ले के जन्म के आठ साल बाद मेरा जन्म हुआ तो अबि ने ही मुझे परी बताया।



ये हमारे घर परी आई है। अब मौसम बदलेगा, हवा अपने साथ गर्मी लायेगी, धूप हवा में खुशबु भरेगी। दिन बड़े होने लगेंगे। ठंड से जमी मिट्टी हवा और धूप से ढ़ीली पड़ने लगेगी। जानवर अब दूर तक घूम कर आएंगे। धरती के अंदर दबे बीज नींद से जाग उठेंगे। नरम होती मिट्टी को फ़ाड़ कर अंकुर फूट पड़ेंगे और किसी सुबह जमीन की किसी खिड़की से  दुनिया और जीवन में झांकने लगेंगे। छह महीने तक बर्फ, ठंड और तूफान से सिकुड़ते पेड़ों के खाली ठूंठ अपनी कटी शाखों के टुंपरों से कोंपले फोड़ कर ताजी हवा और धूप में दैविक छटा बिखेरते मिलेंगे।


बहता पानी अपनी आवाज और बहाव से सबको अपनी ओर रिझाने लगेगा। देखते ही देखते कुछ दिनों में ही रूखी सूखी पथरीली जमीन हरी भरी हो खिल उठेगी। तब सब लोग ज्यादा समय घरों से बाहर निकलेंगे और गीत, प्रार्थना, माणे और पूजा पाठ के स्वर से महीनों से शांत वातावरण फिर जाग उठेगा।


माचूंग कहती है कि उन दिनों अबा सुबह सुबह चाय, रोटी, दाल, चटनी सब बना कर रख देते। मे मे, अचो, अमा और अबि सब जब एक साथ नाश्ते पर जुटते। पर नाश्ते का एक कौर भी न खा पाते जब तक वह मुझे नहला पोंछ कर सबके सामने न ले आती। तभी सब परम इष्ट भगवान का ध्यान कर मुझे निहारने हुए नाश्ता करते।


'मे मे' बताते हैं कि उस साल उन्होंने होमस्टे के तीनों कमरे अच्छी तरह से साफ किए। खिड़कियां खोल कर शीशे पोंछे गये, पलंग हिला हटा कर सफाई हुई और इत्र का छिड़काव किया गया। नयी चादरें बिछाकर और रजाइयों को अच्छे से धूप लगाकर वहां रखा। नये बर्तन, कप, गिलास, जंग, थर्मश सब कुछ नया। कहते हैं कि  उन्होंने अबि को यह कहते सुना था कि  इस साल खुब गाड़ियों की आवाजें गूंजने वाली हैं। मेरी परी की खुशी का देखने खुब सैलानियों हमारे यहां सैर को आयेंगे।



अचो ले घर में छोटी बहन के आने से बहुत खुश हैं पर घर के बाहर गलियों, मोहल्ले और स्कूल में साथ के बड़े लड़कों के छेड़ने से वह सकपकाया हुआ है। 'अमा ले' और 'अबा ले' को लेकर सब उसे छेड़ते हैं कि उन्होंने क्या किया जो उसके घर बच्ची का जन्म हुआ। वह और उसका अबोध मन उनकी शरारत से एक अजीब से अपराध बोध से भर जाता जैसे कि कोई ग़लत काम करने से बच्चे पैदा होते हैं। माचूंग बताती है कि उन दिनों वह बाहर जाने से कतराने लगा और घर पर ही रह कर परी के आसपास साथ खेलते हुए खुश रहता।


बाकी सब जीवन सामान्य ही चला। पहली बर्फबारी और नंगे पांव उस पर दौड़ना,गर्म कपड़े लपेट बांध कर सोना, गाय की बछिया का जन्म, बछिया के साथ खेलना, कई बार उसके और अपने पालतू सुपो कुत्ते के साथ ही सो जाना, बदलते मौसमों के साथ बदलते साल और इन सब में स्कूल जाने लगी परी।


'अचो ले' अपनी 'नोमो ले' की अंगुली पकड़ कर स्कूल ले जाने के साथ घर वापस भी लाता। रास्ते में खेतों से मटर, अल्लु बुखारे और खुबानी के चटखारे लगाते हुए। कभी कभी लेमचूस, बिस्किट, नमकीन और चाकलेट भी खिलाता। मौसम बिगड़ने पर दोनों रास्ते में किसी के घर में घुस जाते। 'मे मे' बताते हैं कि दूर कुंजुंम पहाड़ों के पार से जब बादल आयेंगे तब बर्फ की जगह पानी बरसेगा। छह साल की परी ने आज तक बारिश नहीं देखी है, 'अचो ले' अब 'मे मे' की बात सुनकर हंसता है कि वे ऐसे ही बोलते हैं बारिस कुछ नहीं होता। बस केवल ठंडियों में बादल बर्फ गिराते हैं। उसे पानी बरसने की बात पर कोई भरोसा नहीं रहा। परी को हमेशा 'मे मे' की बात सच्ची लगती और उसे विश्वास है कि हो न हो एक दिन कुंजुंम पहाड़ी के बादल से पानी जरूर बरसेगा।


बच्चे बड़े हो गए और बड़े अब बूढ़े हो चले। काम  वैसे के वैसे बूढ़ों के हाथों से सरकते हुए अगली पीढ़ी के हाथ में आ गए। 



इसी बीच घर में कुछ तनाव व परेशानी का दौर भी आया। होमस्टे में मुंबई से रहने आए एक लड़के से माचुंग की चोरी छुपे दोस्ती हो गई। वह प्रेम में उस लड़के के साथ मुंबई जाने की जिद करने लगी। घर में खाना पीना, सब काम काज और बात चीत सब ठहर से गए। माचूंग को बहुत समझाया गया पर प्रेम की नदी में बहने को उतावली माचूंग को रोकना मुश्किल हो गया। घर के सब लोग नाराज़ थे। मुंबई वाले लड़के के साथ जाने की जिद ने उसे विद्रोही बना डाला। तय हुआ कि  मुझे याद है उस दिन अमा और माचूंग दोनों सड़क तक साथ गये  पर अमा अकेले ही लौट कर आई। 


कुछ महिनों के बाद माचूंग वापस लौट आई। घर पर सभी ने उसे खामोश स्वागत और स्वीकृति देकर साथ रख लिया। मुंबई में क्या हुआ? उसे क्यों छोड़ आई? कुछ पता नहीं। वह अकेले रहती और गुमसुम रह कर सभी काम अकेले करती। अब वह ऐसे रहती जैसे कि परिवार में रहने की कीमत चुकाने के बदले घर के काम में लगी हो। उसकी जिंदगी में एक तूफान सा आया और उसकी हंसी, खुशी,बचपन और यौवन सब ले गया।एक दिन अमा और माचूंग फिर से एक साथ गए और इस बार भी अमा अकेले लौटी। पर इस बार वह खुश खुश लौटी। बहुत सारे फल, मिठाई, राशन सब लेकर लौटी। बताया कि बीए पास माचूंग को लेह के स्कूल में नौकरी मिल गई है। वहीं कमरा लेकर उसे छोड़ आई हूं। घर पर फिर से खुशी की लहर दौड़ गई। 


पहले माचूंग गई और फिर 'अचो ले' का विवाह हो गया, समय के पंख माचूंग को परी से दूर उड़ा ले गए तब घर में आई सोनम और परी की खुब पटने लगी। वे दोनों खूख जमकर दौड़ते, हंसते, खिलखिलाते और खाते पीते।



माचूंग,अचो ले और सोनम, इन तीनों की परी के करवट लेते जीवन में गहरी छाप पड़ी। खिलखिलाते, इठलाती, गुनगुनाते और भरपूर खुशियों में जीने वाली परी के कोमल हृदय को जिंदगी की पहेलियां समझ आने लगी। उसे समझ आ चुका है कि अमा अबा की तरह अचो ले और सोनम को क्यों अलग रहने देते हैं। उसने माचुंग से कभी नहीं पूछा कि मुंबई वालों के साथ जाने के बाद क्या हुआ। पर एक हल्की सी मुस्कान और आत्मविश्वास के साथ वह इन अनबुझ पहेलियों के उत्तर सोच देती और सब के साथ उसका व्यवहार भी बदल रहा है। 'मे मे ले' और अबि ले का सारा समय माणे फिराने और ध्यान,पूजा पाठ में लगता, परी उनके जरूरत की हर चीज उनके कहने से पहले रख देती। अबा ले और अमा ले मिल कर घर के काम और हिसाब में लगे रहते। अब परी को पढ़ाई के लिए  शहर भेजने की तैयारी  है।  वह वहां माचुंग के  साथ रहेगी।


नैसर्गिक रूप से प्रकृति की गोद में खिलने वाले पौधे गमले और क्यारियों में लगाने पर एक बार तो खूब खिलते हैं पर थोड़ा सा ध्यान इधर उधर गया तो मुरझाते भी बड़ी जल्दी हैं। परी अपने कालेज में पढ़ाई में अव्वल आने लगी। पढ़ाई के साथ-साथ खेल कूद और अन्य सभी प्रतियोगी विषयक में उसे पछाड़ पाना किसी के बस का नहीं। इनाम जीत कर, अवार्ड जीतकर, अखबार,रैडियो टीवी में समाचार में आने से वह खूब नाम कमा रही है। बाजार में उसके साथ  गुजरने वाले बाकी भी अपने पर फख्र करते कि वे परी के साथ चल रहे हैं। हर कोई उसे पहचानने लगा। एक बार परी शहर की सड़कों पर दिख जाए सब ओर से "जुले जी" '"जुले जी" का अभिवादन उसे एक अंतरंग खुशी से भर देता। उसकी पढ़ाई और उसकी उड़ान भरने की तैयारी से घर, मोहल्ले और शहर के सभी लोग आशान्वित हैं कि एक दिन परी सबका नाम रोशन करने वाली है।


नेशनल यूथ फेस्टिवल इस बार अपने शहर में होने जा रहा है। कालेज कप्तान परी व साथियों पर  भागीदार होने के साथ साथ मेजबानी की जिम्मेदारी भी है। बंगलौर, देहरादून, जयपुर, दिल्ली, विशाखापत्तनम, हैदराबाद, पुणे, कोलकाता, सूरत, श्रीनगर और मुंबई से भी टीमों की भागीदारी है। सभी में एक उल्लास भरा है। युवा मन कई सारे मनोभावों को हृदय में संजोए बैठे हैं। मेजबानी करने वालों को बाहर से आने वालों की रहने, खाने, घुमाने और यातायात के प्रबंध की जिम्मेदारी भी मिली है। तीन दिन तक सुबह से रात तक पूरी व्यस्तता। जीवन में वयस्क होने के साथ  जिम्मेदार और आत्मनिर्भर बनने का पहला अवसर उन सबके सामने है। दिन भर खूब भागदौड़, खाना पीना, खेल कूद, अलग अलग प्रतियोगिताएं और परिणामों का लेखा जोखा करते करते वक्त के  किसी छोटे से कतरे में अलग अलग स्टेटस के लड़के लड़कियों की जान पहचान, बातचीत से उम्र के इस पड़ाव में उनकी  सदियों से थमी सांसों को जैसे आकस्मिक आक्सीजन की पूर्ति हो जाती। फिर बाजार की सैर, खाने पीने व शापिंग कर एक दूसरे को यादगार भेंट देने दिलाने में यूथ फेस्टिवल गुजर गया। 



इसी आपाधापी में परी की पहचान से मुंबई के रजत से हो गई। एक शाम को बाजार में टहलटे समय हाथ से हाथ छु गया और दोनों के शरीर, दिल दिमाग पर बिजली कौंध उठी। परी को जैसे अबि अबा, माचूंग,अचो ले, सोनम सब से जुड़े अपने मन में बसे सब सवालों के जवाब मिल गए। एक सिहरन सी उसके पूरे शरीर में दौड़ पड़ी। वह खूब देर तक हाथ में हाथ डाल कर उसके साथ घूमी। उसने आज किसी का 'जुले जी' अभिवादन सुनाई नहीं दिया। भीड़ भरे बाजार में वह ऐसे घूमे जैसे कि खाली बाजार में केवल वे दोनों एक-दूसरे के साथ हों। उसे ऐसा एहसास पहले कभी नहीं हुआ था। वह उड़ने को बेताब हो रही है। उसका मन चहकने को हो रहा है। भारी मन से उसके साथ गले लिपट कर होस्टल  के गेट पर छोड़ पाई। 


कमरे पर पंहुच कर चहकती, खिलखिलाते, खुशी में उसने माचुंग से सारी बातें बताते हुए वह बिस्तर पर लेट गई। उसने फ़ैसला कर लिया कि वह कल उनके साथ मुंबई चली जाएगी। बातों में प्यार और आंखों में सपने भरे मुश्किल से रात बिताने के बाद वह सुबह सुबह अपना सामान तैयार कर माचुंग के सामने आ खड़ी हुई। उसे हैरानी हुई कि आज माचुंग नहा धोकर पहले से खड़ी है। उसने बताया कि सड़क तक वह भी साथ चलेंगी। 


सड़क पर चलते हुए दोनों बातें करने लगे पर उनकी बातों में कोई आपसी तालमेल न था। मन और बुद्धि का संतुलन अलग अलग होने के कारण मौसम, कालेज, लड़के, घर और सब बातों के बंद होने पर बादल की बात करते हुए वे होस्टल पंहुच गए जहां से यूथ फेस्टिवल में प्रतिभाग करने आए लोग वापिस लौटने वाले हैं। बादल से पानी बरसने का इंतजार करने वाली "मे मे"  की बात पर हंसते हुए दोनों ने विदा ली। माचूंग सड़क किनारे के पत्थर पर बैठ गई। वहीं से परी के होस्टल में प्रवेश करने से और आंखों से ओझल होने तक उसने देखा। 


एक के बाद एक बस निकल गई। फिर एक और, फिर एक और करते हुए सभी बसें चली गई। माचुंग वहीं सड़क किनारे पत्थर पर बैठी रही। बसों का शोर और उनके पहियों और इंजनों से उड़ता धूल  धुआं भी छंटने लगा। उसने देखा इसी घूल धुंए के बादल के बीच से परी अपना सामान उठाए धीरे धीरे लौट रही है। वह जल्दी से उठकर उसकी ओर देखते हुए दौड़ पड़ी। परी जोर से रोते हुए माचूंग से लिपट गई और सिसकने लगी।


माचुंग खामोश रह परी को सहलाने लगी, उसने उसे गले लगा कर चुप कराने की कोशिश की। परी ने रोते हुए पूछा कि अभी तक क्यों रुकी हुई हो। 



माचूंग ने बताया कि जब वह मुंबई वाले लड़के के साथ गई थी तो एक बार वह भी लौट कर आई थी पर तेरी 'अमा ले' ने उसका इंतज़ार नहीं किया था। इसलिए मैंने आज बैठकर तुम्हारा इंतज़ार किया कि कहीं तुम लौटो और किसी को अपना इंतजार न करते देख फिर वापस चले जाओ। 


परी ने देखा आसमान में बादल घिर आए हैं उसने "मे‌ मे" को याद किया। माचुंग और परी आज खूब रोए। आज उन्होंने देखा कि वर्षों से बरसने का इंतजार करने वाले कुंजुंम पहाड़ी के बादल से आज खूब सारा पानी बरसा।