रविवार, 19 जुलाई 2020

" ये ख़्वाब कुछ और हैं " कवयित्री श्वेता सिंह की कलम से...

कवयित्री श्वेता सिंह की कलम से...


 


"ये ख़्वाब कुछ और हैं "


 


कब सोचा था हर पल तेरे ख़्यालों में रहूँ,


बन के उलझन सारे तेरे सवालों में रहूँ,


दूर बहुत तुझसे फिर भी साथ हूँ तेरे,


इन क़रीबी फ़ासलों के मायने शायद कुछ और हैं...!


 


कब चाहा था बिना तेरे ये ग़म भी पीना,


तू ना हो सामने तो मुश्किल था जीना,


हालात नज़रों के सामने गुज़रे यूँ हमसफ़र,


अब ये जाना इन मंज़िलों के रास्ते कुछ और हैं...!


 


गहरी अँधेरी रातों में दूर कहीं रौशन चिराग तुम थे,


जिसके ख़्वाबों ने अब तक संभाले रखा तुम थे,


तुम्हें सितमगर मैं कहूँ या अपना रहनुमा,


बयान तेरे अलग मगर निगाहें तेरी कहतीं कुछ और हैं...!!