संवाददाता : नई दिल्ली
विश्व दलहन दिवस के उपलक्ष में रोम में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि भारत, दुनिया में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। भारत ने दलहन में लगभग आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है। बीते पांच-छह साल में ही भारत ने दलहन उत्पादकता को 140 लाख टन से बढ़ाकर 240 लाख टन से ज्यादा कर लिया है। वर्ष 2019-20 में, भारत में 23.15 मिलियन टन दलहन उत्पादन हुआ, जो विश्व का 23.62% है।
वर्ष 2016 के संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र के अनुरूप यह विश्व दलहन दिवस मनाया गया। इसमें संत पोप फ्रांसिस, एफएओ-संयुक्त राष्ट्र के महानिदेशक श्री क्यू डोंग्यू, चीन गणराज्य के कृषि और ग्रामीण कार्य मंत्री रेंजियांन टैंग, फ्रांसीसी गणराज्य के कृषि और खाद्य मंत्री जूलियन डेनोरमांडी एवं अर्जेंटीना गणराज्य के कृषि मंत्री के अलावा यूएन खाद्य प्रणाली शिखर वार्ता के विशेष राजदूत डॉ. एग्नेस कलिबाता तथा अन्य गणमान्यजन शामिल हुए। गरीबी, खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य और पोषण, मृदा स्वास्थ्य और पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान करने में दलहन की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिन पर प्रकाश डालने तथा उससे सतत विकास लक्ष्यों व भूखमुक्त विश्व के निर्माण में योगदान देने के लिए विश्व दलहन दिवस पर यह परिचर्चा आयोजित की गई। इससे भविष्य की वैश्विक खाद्य सुरक्षा, पोषण एवं पर्यावरणीय स्थिरता की जरूरतों को पूरा करने के लिए दलहन की क्षमता की प्रामाणिकता सिद्ध होती है।
समारोह में तोमर ने कहा कि पौष्टिक खाद्यान्न व प्रोटीन से भरपूर होने से दलहन फूड बास्केट के लिए महत्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से हमारी भारतीय संस्कृति के लिए अहम हैं, क्योंकि हम मुख्यतः शाकाहारी हैं और भोजन में दालों को प्रमुख रूप से शामिल करते हैं। दलहन में पानी की कम खपत होती है, सूखे वाले क्षेत्रों और वर्षा सिंचित क्षेत्रों में दलहन उगाई जा सकती हैं। यह मृदा में नाइट्रोजन संरक्षित करके मृदा की उर्वरता में सुधार करती है, इससे उर्वरकों की आवश्यकता कम होती है और इसलिए ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत सरकार की वर्तमान पहल, मांग और आपूर्ति के अतंराल को पाटने का एक प्रयास है। चूंकि, हम भारतीयों के एक बड़े वर्ग की दलहन से प्रोटीन की आवश्यकता पूरी होती है, इसलिए दलहन भारतीय कृषि का एक प्रमुख घटक बना रहेगा। हमारे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और अन्य कार्यक्रमों में एक प्रमुख फसल के रूप में दलहन को स्थान मिलता रहेगा। चावल के परती क्षेत्रों को लक्षित करके और नवाचारी तकनीकी गतिविधियों के संयोजन और आवश्यक कृषि इनपुट के प्रावधान से बड़े पैमाने पर दलहन के उत्पादन में वृद्धि हुई है।
उन्होंने बताया कि भारत में 86% छोटे व सीमांत किसान हैं, जिन्हें हर तरह की सहायता के लिए एफपीओ को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत सरकार देश में 10 हजार नए एफपीओ बनाने जा रही है, जिन पर 5 साल में 6,850 करोड़ रूपए खर्च किए जाएंगे। इससे बीज उत्पादन, खरीद व बेहतर प्रौद्योगिकियों तक पहुंच के लिए किसानों को सामूहिक रूप से सक्षम बनाया जा सकेगा। मृदा स्वास्थ्य के साथ-साथ भारत सरकार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा बढ़ावा दिए जा रहे प्रति बूंद- अधिक फसल के लक्ष्य प्राप्ति सहित कृषि में जल उपयोग दक्षता को बढ़ाने के लिए उच्च प्राथमिकता दे रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने भी अनुसंधान व विकास से दलहन उत्पादन वृद्धि में मदद की है। दलहनी फसलों के शोध को नई दिशा मिली है और नई-उन्नत प्रजातियां विकसित करने की दिशा में अभूतपूर्व कार्य किया गया है। 5 वर्षों में ही 100 से ज्यादा उन्नत व अधिक उपज देने वाली प्रजातियां विकसित की गई है। सरकार उन्न्त किस्मों के बीजों, दलहन की खेती के अंतर्गत नए क्षेत्रों को लाने और बाजार जैसे क्षेत्रों पर फोकस कर रही है, जिससे किसानों का लाभ बढ़ाने में सहायता मिल सकेगी।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि खेती-किसानी के विकास के लिए सरकार चौतरफा उपाय कर रही है। पीएम किसान सम्मान निधि द्वारा साढ़े 10 करोड़ से ज्यादा किसानों के बैंक खातों में 1.15 लाख करोड़ रू. भेजे जा चुके हैं। फार्मगेट पर किसानों को वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज, फूड प्रोसेसिंग यूनिट जैसी अधोसरंचना उपलब्ध कराने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत 1 लाख करोड़ रू. का कृषि अधोसरंचना कोष बनाया गया है, जिससे अब नए बजट प्रावधान के अनुरूप राज्यों में एपीएमसी को भी लाभ मिलेगा। इस वैश्विक सम्मेलन को अन्य देशों के मंत्रियों तथा अन्य प्रतिनिधियों ने भी संबोधित किया।