शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

प्रधानमंत्री ने विश्‍व भारती विश्‍वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया...

 संवाददाता : नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने शुक्रवार वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग के जरिये विश्‍व भारती विश्‍वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया। इस अवसर पर पश्चिम बंगाल के राज्‍यपाल और विश्‍व भारती के रेक्‍टर जगदीप धनखड, केन्‍द्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और शिक्षा राज्‍य मंत्री संजय धोत्रे भी मौजूद थे।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में वीर शिवाजी के बारे में गुरुदेव रवीन्‍द्रनाथ टैगोर की उस कविता का उद्धरण दिया, जिसने उन्‍हें न सिर्फ प्रेरणा दी, बल्कि भारत की एकता का भी आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि छात्र और संकाय सदस्‍य किसी विश्‍वविद्यालय के सिर्फ अंग ही नहीं होते, बल्कि वे अपनी परम्‍पराओं के वाहक भी होते हैं। उन्‍होंने कहा कि गुरुदेव ने इस विश्‍वविद्यालय का नाम विश्‍व भारती रखा, जिसका अर्थ है वैश्विक विश्‍वविद्यालय। वे ये उम्‍मीद करते थे कि विश्‍व भारती में ज्ञान प्राप्‍त करने के लिए जो भी व्‍यक्ति आएगा, वह पूरे विश्‍व को भारत और भारतीयता के दृष्टिकोण से देखेगा।

इसलिए उन्‍होंने विश्‍व भारती को ज्ञान प्राप्ति का ऐसा स्‍थान बनाया, जिसे भारत की समृद्ध विरासत के तौर पर देखा जा सकता है। उन्‍होंने भारतीय विरासत आत्‍मसात करने और उसके विषय में अनुसंधान करने तथा देश के सबसे गरीब व्‍यक्ति की समस्‍याओं के समाधान के लिए काम करने का आह्वान किया। उन्‍होंने कहा कि गुरुदेव के लिए विश्‍व भारती सिर्फ एक ज्ञान का प्रसार करने वाला संस्‍थान ही नहीं था, बल्कि वह भारतीय संस्‍कृति के सर्वोच्‍च लक्ष्‍य प्राप्‍त करने का जरिया था, जिसे किसी भी व्‍यक्ति को प्राप्‍त करना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि गुरुदेव का विश्‍वास था कि हमें विभिन्‍न विचारधाराओं और मतभेदों के बीच खुद की तलाश करनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि टैगोर बंगाल पर गर्व करते थे, लेकिन इसके साथ ही वह भारत की विविधता पर भी गर्व करते थे और यही वजह है कि गुरुदेव की परिकल्‍पना के अनुरूप शांति निकेतन में मानवता उन्‍मुक्‍त होकर विकसित होती है। उन्‍होंने विश्‍व भारती को ज्ञान का अनंत सागर बताकर उसकी प्रशंसा की और कहा कि इसकी आधारशिला अनुभव आधारित शिक्षा के उद्देश्‍य से रखी गई। उन्‍होंने कहा कि रचनात्‍मकता और ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। यही वह विचार है, जिस पर चलकर गुरुदेव ने इस महान विश्‍वविद्यालय की नींव रखी।

प्रधानमंत्री ने छात्रों से अपील की कि वे हमेशा यह याद रखें कि ज्ञान, विचार और कुशलता स्थिर भाव नहीं, बल्कि गतिशील और लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। उन्‍होंने कहा कि ज्ञान और शक्ति के साथ जिम्‍मेदारी भी आती है। सत्‍ता में रहते हुए व्‍यक्ति को संयमी और संवेदनशील होना होता है। उसी तरह हर विद्वान को उन लोगों के लिए जिम्‍मेदार होने की जरूरत है, जिनके पास ज्ञान का अभाव है।

एक भारत श्रेष्‍ठ भारत के लिए बंगाल की प्रेरणा का आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्‍व भारती 21वीं सदी की ज्ञान अर्थव्‍यवस्‍था में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएगा और भारतीय ज्ञान तथा पहचान को विश्‍व के कोने-कोने तक ले जाएगा। श्री मोदी ने इस प्रतिष्ठित संस्‍थान के विद्यार्थियों से कहा कि वे 2047 में विश्‍व भारती के 25 बड़े लक्ष्‍यों के बारे में अगले 25 वर्षों के लिए विजन दस्‍तावेज तैयार करें। प्रधानमंत्री ने विद्यार्थियों से भारत के बारे में जानकारी का प्रचार-प्रसार करने को कहा।

उन्‍होंने कहा कि विश्‍व भारती को भारत का संदेश विश्‍व में ले जाने और भारत की छवि बढ़ाने में सभी शिक्षण संस्‍थानों का नेतृत्‍व करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने विद्यार्थियों से आस-पड़ोस के गांव को आत्‍मनिर्भर बनाने और वैश्विक स्‍तर पर उनके उत्‍पाद ले जाने के रास्‍ते तैयार करने को कहा।