बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

"तकदीर का रुख हम बदल ना सके और" कवयित्री कुसुम डबराल की कलम से...

कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम डबराल की कलम से  :-


 


"तकदीर का रुख हम बदल ना सके "


तकदीर का रुख हम बदल ना सके और , 
रोज तस्वीरों मे अपनी रंग भरते रहे l
चाहत को अपनी ख़ुशी बनाकर फूल कुदरत के खिलाते रहे...


मालूम था नही हो तुम तकदीर मे हमारी 
फिर भी चाहत को अपनी बढ़ाते  रहे ... 
मिलोगे कभी तो श्याम मेरे उस पार 
हम तब तकदीर को अपनी बदल देंगे।